________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम्
[ उद्देशप्रशस्तपादभाष्यम् एवं धम्मैर्विना धम्मिणामुद्देशः कृतः ।
इस प्रकार धर्मों को छोड़ कर केवल म्मियों के नामों का उल्लेख किया गया है।
न्यायकन्दली ननु किमर्थं षडेव पदार्था उद्दिष्टा नापरे ? तेषामेव भावात्, तदन्येषामभावाच्च । तदभावश्च सर्वैः प्रमाणैरनुपलभ्यमानत्वाच्छाविषाणवत् । षण्णां सामान्यलक्षणं विधिप्रत्ययविषयत्वम् । व्यावृत्तन्तु लक्षणम्-यथा गुणाश्रयो द्रव्यम् । सामान्यवानगुणः संयोगविभागयोरनपेक्षो न कारणं गुणः । एकद्रव्यमगुणं संयोगविभागयोरनपेक्षकारणं कर्म । अनुवृत्तिप्रत्ययकारणं सामान्यम् । अत्यन्तव्यावृत्तिबुद्धिहेतुविशेषः । अयुतसिद्धयोराश्रयाश्रयिभावः समवाय इति ।
अनुद्दिष्टेषु धम्मिधु धर्मा न शक्यन्ते वक्तुम्, अतो धर्माणामुद्देशं प्रक्रमयितुं सङ्गति प्रदर्शयति-एवमिति । एवं पूर्वोक्तेन ग्रन्थेन धर्मे विना भी भिन्न भिन्न हो सकते हैं । जैसे कि वह्नि और अयःपिण्ड का परस्पर सम्मिलन बिना संयोग रूप सम्बन्ध के असम्भव है, उसी प्रकार किन्हीं भी विभिन्न दो पदार्थों का बिना किसी सम्बन्ध के परस्पर सम्मिलन असम्भव है। अन्तर केवल इतना ही है कि उत्पन्न होने के बाद वह्नि अयःपिण्ड के साथ सम्बद्ध होता है, किन्तु समवाय का प्रतियोगी अपने कारणों के बल से अपने अनुयोगी में सम्बद्ध ही उत्पन्न होता है जैसे कि काटने की क्रिया काटे जानेवाली वस्तु के साथ सम्बद्ध ही उत्पन्न होती है । इस विषय में इतना ही विचार पर्याप्त है।
(प्र०) छः पदार्थों का ही प्रतिपादन क्यों किया ? और पदार्थों का क्यों नहीं? (उ०) इस लिए कि पदार्थ उतने ही हैं, उससे अधिक नहीं . इन छ: पदार्थों से भिन्न पदार्थों का अभाव इसलिए है कि वे किसी भी स्वीकृत प्रमाण से उपलब्ध नहीं हैं। जैसे कि खरहे की सींग। छः पदार्थों का सामान्य लक्षण यह है कि किती प्रतियोगी की अपेक्षा के बिना भावत्वरूप से ज्ञात होना । प्रत्येक पदार्थ का औरों में न रहनेवाला लक्षण इस प्रकार है-(१) गुणों का आश्रय द्रव्य है । (२) जो सामान्य (जाति) से युक्त हो, गुणों से सर्वथा रहित हो, संयोग और विभाग का स्वतन्त्र कारण न हो वही गुण है। (३) जो एक समय में एक ही द्रव्य में रहे, गुणों से सर्वथा शून्य हो, एवं संयोग और विभाग का स्वतन्त्र कारण हो वही कर्म है । (४) अपने विभिन्न आश्रयों में एकाकारता प्रतीतिरूप अनुवृत्तिप्रत्यय का कारण 'जाति' है। (५) अपने आश्रय में औरों से भिन्नत्व बुद्धिरूप व्यावृत्तिप्रत्यय का कारण 'विशेष' है। (६) अयुतसिद्धों के आधाराधेयभाव का नियामक सम्बन्ध 'समवाय' है।
___ जब तक धीं न कहे जाय तब तक उनके धर्म नहीं कहे जा सकते । अतः पदार्थों के उद्देश के बाद पदार्थ के धर्म अर्थात् साधर्म्य क्यों कहे गये ? इस प्रश्न का
For Private And Personal