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न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम्
[ द्रव्ये जल
प्रशस्तपादभाष्यम् इन्द्रियं सर्वप्राणिनां रसव्यञ्जकं विजात्यनभिभूतैर्जलावयवैरारब्धं रसनम् । विषयस्तु सरित्समुद्रहिमकरकादिः ।
जिससे प्राणियों को रस का प्रत्यक्ष होता है, वही जलीय इन्द्रिय है। यह विरोधी द्रव्यों की शक्ति से अपराजित जल के अवयवों से बनती है। इस इन्द्रिय का अन्वर्थ नाम है 'रसना' । नदी, समृद्र, पाला, बरफ इत्यादि विषय रूप जल हैं।
न्यायकन्दली - इन्द्रियं रसव्यञ्जकं सर्वप्राणिनामिति । सर्वप्राणिनां रसव्यञ्जकं यदिन्द्रियं तज्जलावयवैरारब्धम् । तथापि कस्मात् तदेव रसव्यञ्जकं स्यात्, नान्यदुदकद्रव्यमित्याह---विजात्यनभिभूतैरिति । विजातिभिः पार्थिवावयवैर्येऽनभिभूता अप्रतिहतसामर्थ्या आप्यावयवास्तैरितरद्रव्यविलक्षणमारब्धमत इदं विशिष्टोत्पादाद्रसव्यञ्जकमिन्द्रियं न द्रव्यान्तरम्, तस्येत्थमुत्पत्त्यभावादित्यर्थः । एतच्च नियमदर्शनादेव कल्प्यते । रसनेन्द्रियसद्भावे रसोपलब्धिरेव प्रमाणम्, क्रियायाः की उत्पत्ति नहीं हो सकती। मानव शरीर पार्थिव है, क्योंकि उसमें गन्ध की उपलब्धि होती है, जैसे कि पार्थिव परमाणु । (प्र.) मानव शरीरों में जलादि के धर्मों की उपलब्धि कैसे होती है ? ( उ०) संयुक्त समवाय सम्बन्ध से । अब इस विषय में इतना ही पर्याप्त है।
"इन्द्रियं रसव्यञ्जकं सर्वप्राणिनाम्"। यह तो ठीक है कि सभी प्राणियों के रसप्रत्यक्ष का कारण रसनेन्द्रिय जल के अवयवों से बनती है फिर भी इन्द्रिय रूप जलीय द्रव्य ही क्यों रस का व्यञ्जक होगा ? कोई और जलीय द्रव्य क्यों नहीं ? 'विजात्यनभिभूतैः' इत्यादि से इसी प्रश्न का उत्तर देते हैं। 'विजाति' अर्थात् पार्थिव अवयवों से, 'अनभिभूत' अर्थात् जिनका बल प्रतिरुद्ध नहीं हुआ है, इस प्रकार के जलीय अवयवों से यह ( इन्द्रिय रूप) विलक्षण द्रव्य उत्पन्न होता है । इस प्रकार और जलीय द्रव्यों से विलक्षण रूप से उत्पन्न होने के कारण यह इन्द्रिय रूप जलीय द्रव्य ही रस का ब्यञ्जक है, और कोई जलीय द्रव्य नहीं । क्योंकि और जलीय द्रव्यों की उत्पत्ति इससे भिन्न रीति से होती है । "इस रसनेन्द्रिय रूप जलीय द्रव्य से ही रस को अभिव्यक्ति होती है, और द्रव्यों से नहीं” इस नियम से ही उक्त कल्पना करते हैं । रस की उपलब्धि ही रसनेन्द्रिय
१. पार्थिव, जलीय, तैजस और वायवीय भेद से शरीर चार प्रकार के हैं । इनमें से प्रत्येक के क्रमशः पृथिवी, जल, तेज और वायु इनमें से एक एक ही समवायिकारण हैं। चारों में से तीन और आकाश ये सभी निमित्तकारण हैं। इमीसे शरीरों में पाञ्चभौतिकत्व का व्यवहार होता है।
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