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न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपाद भाष्यम्
[द्रव्ये जल
प्रशस्तपादभाष्यम् ताश्च पूर्ववद् द्विविधाः, नित्यानित्य भावात् । तासां तु कार्य त्रिविधं शरीरेन्द्रियविषयसंज्ञकम् । तत्र शरीरमयोनिजमेव वरुणलोके, पार्थिवावयवोपष्टम्भाच्चोपभोगसमर्थम् ।।
___ यह भी पृथिवी की तरह नित्य और अनित्य भेद से दो प्रकार का ह । शरीर, इन्द्रिय, और विषय भेद से कार्य रूप जल के तीन प्रकार हैं । जलीय शरीर अयोनिज ही होते हैं । वह शरीर केवल वरुण-लोक में प्रसिद्ध है एवं पार्थिव अवयवों के सम्बन्ध से सुख और दुःख की अनुभूति की शक्ति प्राप्त करता है।
न्यायकन्दली
पृथिव्या इवापामप्यवान्तरभेदेन द्वैविध्यमित्याह-ताश्चेति । परमाणुस्वभावा आपो नित्याः, कार्यस्वभावास्त्वनित्याः । कार्यञ्च त्रिविधम् । अत्रापि पूर्ववदनुषङ्गः, यथा पृथिव्याः शरीरेन्द्रियविषयसंज्ञितं कायं त्रिविधमेवमपामपोति । तत्र शरीरमयोनिजमेव, पार्थिवं शरीरं योनिजमयोनिजञ्च, आप्यं शरीरमयोनिजमेवेति विशेष इत्यर्थः । ननु मानुषं शरीरं तावत् पार्थिवंगन्धगुणोपलब्धेः, आप्यं तु क्वास्तीत्याह-वरुणलोक इति। इदं शरीरमपामागमात् प्रत्येतव्यम् । द्रवत्वकस्वभावत्वादपां तदारब्धं शरीरं जलबुबुदप्रायं विशिष्टव्यवहारायोग्यं कथमुपभोगसमर्थ स्यादित्याह-पार्थिवावयवोपष्टम्भादुपभोगसमर्थम् । पार्थिवानामवयवानामुपष्टम्भात् संयोगविशेषा
'ताश्च' इत्यादि से लिखते हैं कि पृथिवी की तरह जल के भी अपने अवान्तर भेद दो प्रकार के हैं। परमाणुरूप जल नित्य है, एवं कार्यरूप जल अनित्य है। “कार्यं त्रिविधम्" इस वाक्य में 'त्रिविधम्' यह पद भी जोड़ देना चाहिए। ( तदनुसार इस वाक्य का यह अर्थ है कि ) जैसे पृथिवी के शरीर, इन्द्रिय और विषय भेद से तीन भेद हैं, वैसे ही उसी नाम से जल के भी तीन भेद हैं। 'तत्र शरीरमयोनिजमेव' अर्थात् पार्थिव शरीर से जलीय शरीर में यह अन्तर है कि पार्थिव शरीर के योनिज और अयोनिज दोनों ही प्रकार हैं, किन्तु जलीय शरीर केवल अयोनिज ही होते हैं : मनुष्य के शरीर में गन्ध की उपलब्धि होती है, अतः समझते हैं कि वह पार्थिव है। किन्तु जलीय शरीर कहाँ है? इस प्रश्न का उत्तर देते हैं कि 'वरुणलोके', अर्थात् जलीय शरीर केवल वरुणलोक में प्रसिद्ध है। इस विषय को शास्त्र के द्वारा ही समझना चाहिए । जल प्रसरणशील द्रव्य हैं, इससे उत्पन्न शरीर तो जल के बुबुदे के समान होंगे, उनसे शरीर के प्रधान प्रयोजन उपभोग का सम्पादन असम्भव होगा। इसी असम्भावना को 'पार्थिवावयवोपष्टम्भाच्च' इत्यादि से हटाते हैं। अर्थात् पार्थिव अवयवों के उपष्टम्भ
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