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६७.
স ]
भाषानुवादसहितम्
प्रशस्तपादभाष्यम् क्षितितेजसो मित्तिकद्रवत्वयोगः ।
पृथिवी और तेज इन दो द्रव्यों का नैमित्तिक द्रवत्व का सम्बन्ध साधर्म्य है।
न्यायकन्दली क्षितितेजसो मित्तिकद्रवत्वयोगः । निमित्तादुपजातं ( नैमित्तिकम् ), नैमित्तिकञ्च तद्वत्वञ्चेति नेमित्तिकद्रवत्वम, तेन सह क्षितितेजसोर्योगः, पाथिवस्य सपिरादेस्तैजसस्य च सुवर्णरजतादेरग्निसंयोगेन विलयनात् । गुरुत्ववत्पार्थिवभेव द्रवत्वं दह्यमानेषु सुवर्णादिषु संयुक्तसमवायात् प्रतीयत इति चेत् ? न, पाथिबद्रवत्वस्यात्यन्ताग्निसंयोगेन भस्मीभावोपलब्धः, अस्य च तदभावात् । अत एव सुवर्णादिकमपि पार्थिवमेवेति कस्यचित् प्रवादोऽपि प्रत्युक्तः, पार्थिवत्वे सति सर्पिरादिवदत्यन्तवह्निसंयोगेन द्रवत्वोच्छेदप्रसङ्गात् ।
यदपीदमुक्तं पार्थिवं . सुवर्णादिकम्, सांसिद्धिकद्रवत्वाभावे सति इस प्रकार यह स्वीकार करना पड़ेगा कि देश और काल भी कार्योत्पत्ति के अङ्ग हैं, क्योंकि कार्य के उत्पादक सभी कारण काल और दिशा की अपेक्षा रखते हैं। काल और दिशा में सभी कार्यों का यही निमित्तकारण है कि किसी कालविशेष और देशविशेष में ही कार्यों की उत्पत्ति होती है, सभी कालों और सभी देशों में नहीं।
निमित्तादुपजातं नैमित्तकम्' इस व्युत्पत्ति के अनुसार जो कारण से उत्पन्न हो उसे 'नैमित्तिक' कहते हैं । 'नैमित्तिमञ्च तद्रवत्वञ्चेति' इस कर्मधारय समास के बल से किसी निमित्त से उत्पन्न द्रवत्व ही नैमित्तिकद्रवत्व' शब्द का अर्थ है। उसके साथ सम्बन्ध ही पृथिवी और तेज का साधर्म्य है क्योंकि घृतादि पार्थिव द्रव्य और सुवर्णादि तैजस द्रव्य आग के संयोग से विलीन होते (पिघलते) दीख पड़ते हैं, अत: उनमें अवश्य ही नैमित्तिक द्रवत्व है। (प्र०) जिस प्रकार सुवर्ण में पार्थिव गुरुत्व की ही उपलब्धि संयुक्तसमवाय संबन्ध से होती है, उसी प्रकार सुवर्ण में पृथिवीगत नैमित्तिक द्रवत्व की ही सयुक्तसमवाय सम्बन्ध से उपलब्धि होती है। (अर्थात् सुवर्ण में नैमित्तिक द्रवत्व नहीं है)। (उ०) घृतादि पोथिव द्रव्यों में रहनेवाले नैमित्तिक द्रवत्व का यह स्वभाव है कि अग्नि के अत्यन्त संयोग से नष्ट हो जाना, सुवर्ण के द्रवत्व में यह बात नहीं है। इसी समाधान से स्वर्ण को पृथिवी होने का प्रवाद भी खण्डित हो जाता है, अगर सुवर्ण पार्थिव होता तो फिर घृतादि पार्थिव द्रव्यों के द्रवत्व की तरह सुवर्ण का द्रवत्व भी अग्नि के अत्यन्त संयोग से नष्ट हो जाता।
(प्र०) यह जो विरोधी अनुमान का प्रयोग किया जाता है कि सुवर्ण पार्थिव ही है, क्योंकि सांसिद्धिक द्रवत्व के न रहने पर भी उसमें गुरुत्व है, जैसे कि ढेले में (उ०) इस
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