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[व्रव्ये पृथिवी
न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम्
न्यायकन्दली
ग्राहकप्रमाणान्तरविरोधादनुपपन्नस्तद्वदयोनिजशरीराभ्युपगमोऽपि, नैवम्, शुक्रादिनिरपेक्षस्यापि शलभादिशरीरस्य दर्शनात् । विशिष्टसंस्थानस्य शरीरस्य शुकादिपूर्वतावगतेति चेत् ? सत्यम्, तथापि न नियमसिद्धिः, किमदृष्टविशेषाभावादस्मदादिशरीरस्य शुक्रादिपूर्वता, किं वा विशिष्टसंस्थानमात्रानुबन्धकृतेति संदेहात्। एतेन बाधकानुमानमपि पर्य्यदस्तम्, तस्य व्याप्तिसंदेहात् । यच्चात्र वक्तव्यं तद्योगिप्रत्यक्षनिरूपणावसरे वक्ष्यामः ।
____ अधर्मविशेषेणाप्ययोनिजं शरीरं भवेतीत्याह--क्षुद्रजन्तूनामिति । क्षुद्रजन्तवो दंशमशकादयस्तेषां यातना पीडा दु:खमिति यावत्, तदर्थं शरीरं यातनाशरीरम् । तदधर्मविशेषसहितेभ्योऽणुभ्यो जायते। इदन्त्विह लोकसिद्धमेव । योनिजं शरीरमाह--शुक्रशोणितसन्निपातजमिति । शुक्रञ्च शोणितञ्च तयोः सन्निपातः संयोगविशेषः, तस्माज्जातं योनिजदेहोत्पत्ति से पहिले नियमतः शुक्रशोणित को देखने के कारण अयोनिज शरीर का मानना सम्भव नहीं है ? (उ०) नहीं, क्योंकि शुक्र और शोणित के विना भी कीड़े-मकोड़े प्रभृति के अनेक शरीर देखे जाते हैं । (प्र.) फिर भी कुछ शरीर तो नियमतः शुक्रशोणित से ही उत्पन्न होते हैं। (उ०) तब भी यह सन्देह रह ही जाता है कि जिन शरीरों की उत्पत्ति के पहिले शुक्र शोणित का संनिपात नियमतः देखा जाता है, उस (नियम) का कारण (शुक्रशोणित निरपेक्ष शलभादि शरीर के सम्पादक अदृष्ट के सदृश) अदृष्ट का अभाव है ? अथवा उस शरीर का ही यह स्वभाव है कि वह बिना शक्रशोणित के उत्पन्न ही न हो । तस्मात् यह नियम ही नहीं हो सकता कि सभी शरीर शुक्र और शोणित से ही उत्पन्न हों। इससे यह बाधक अनुमान भी खण्डित हो जाता है कि देवादि शरीर भी शुक्रशोणितपूर्वक हैं, क्योंकि वे भी विशेष आकार के हैं जैसे कि मनुष्यशरीर क्योंकि कथित युक्ति से इस अनुमान की व्याप्ति ही संदिग्ध है। इस विषय में और जो कुछ भी कहना है वह योगिप्रत्यक्ष के निरूपण में कहेंगे ।
'क्षुद्रजन्तूनाम्' इत्यादि पङ्क्ति से कहते हैं कि विशेष प्रकार के अधर्म से भी अयोनिज शरीर की उत्पत्ति होती है। ये 'क्षुद्रजन्तु' हैं डांस, मच्छर प्रभृति । इनके शरीर 'यातनाशरीर' कहलाते हैं, 'यातना' शब्द का अर्थ है पीड़ा, दुःख । भोग करना ही जिस शरीर का प्रधान प्रयोजन हो वही है 'यातनाशरीर' । वे विशेष प्रकार के अधर्मों से सहकृत परमाणुओं से ही उत्पन्न होते हैं । यह विषय आपामर प्रसिद्ध है। शुक्रशोणितसंनिपातजम' इत्यादि से योनिज शरीर का निरूपण करते हैं । शुक्र और शोणित इन दोनों का जो 'संनिवेश' अर्थात् विशेष प्रकार का संयोग, उस संयोग से 'जात' अर्थात् जन्म हो जिसका वही 'योनिज' शब्द से व्यवहृत होता है।
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