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न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम्
[द्रव्ये पृथिवीप्रशस्तपादभाष्यम् शरीरं द्विविधं योनिजमयोनिजञ्च । तत्रायोनिजमनपेक्ष्य शुक्रशोणितं देवर्षीणां शरीरं धर्मविशेषसहितेभ्योऽणुभ्यो जायते । क्षुद्रजन्तूनां यातनाशरीराण्यधर्मविशेषसहितेभ्योऽणुभ्यो जायन्ते । शुक्रशोणितसन्निपातजं योनिजम् । तद् द्विविधं जरायुजमण्डजञ्च । मानुषपशुमृगाणां जरायुजम् । पक्षिसरीसृपाणामण्डजम् । हैं। इनमें शरीर (१) योनिज और (२) अयोनिज भेद से दो प्रकार का है। इनमें एक प्रकार के अयोनिज शरीर देवताओं और ऋषियों के हैं, जो शुक्र और शोणित की अपेक्षा न रखकर विशेष प्रकार के धर्म और परमाणुओं से ही उत्पन्न होते हैं। (दूसरे प्रकार के) अयोनिज शरीर (मशकादि) क्षुद्र जीवों के हैं जो (शुक्र शोणित की अपेक्षा न रखकर ) अधर्म एवं परमाणुओं से उत्पन्न होते हैं। शुक्र और शोणित के संयोग से उत्पन्न शरीर को ही योनिज शरीर' कहते हैं । योनिज शरीर भी (१) जरायुज और (२) अण्डज भेद से दो प्रकार का है। मनुष्य, पशु एवं मृगादि के शरीर जरायुज' हैं, एवं चिड़ियों और साँप प्रभृति जीवों के शरीर 'अण्डज' हैं।
न्यायकन्दली
कार्यान्तरं त्वस्याः समुच्चिनोति-त्रिविधमिति। कार्यवैविध्यमेव दर्शयति-शरीरेत्यादि । शरीरमिन्द्रियं विषय इति संज्ञा यस्य कार्यस्य तत्तथा। भोक्तुर्भोगायतनं शरीरम्, मृतशरीरे तद्योग्यत्वात् तद्व्यपदेशः। शरीराश्रयं ज्ञातुरपरोक्षप्रतीतिसाधनं द्रव्यमिन्द्रियम् । शरीरेन्द्रियव्यतिरिक्तमात्मोपभोगसाधनं द्रव्यं विषयः । शरीरभेदं कथयति-- योनिजमयोनिजञ्चेति । शुक्रशोणितसन्निपातो योनिः, तस्माज्जातं योनिजम, तद्विपरीतमयोनिजम् । तदेव दर्शयति--तत्रायोनिजमिति । तयोर्योनिजायोनिजयो
पृथिवी के और कार्यों का सङ्कलन 'शरीर' इत्यादि से करते हैं। अर्थात् शरीर, इन्द्रिय और विषय ये तीन नाम जिनके हैं वे ही 'शरीरेन्द्रियविषयसंज्ञक, हैं । भोग करनेवाला ( जोव) जिस आश्रय में भोग करे वही 'शरीर' है। मृत शरीर में भोग की योग्यता के कारण शरीरत्व का व्यवहार होता है। शरीर में रहनेवाला एवं जीव के अपरोक्ष ज्ञान का सम्पादक द्रव्य ही इन्द्रिय है। शरीर और इन्द्रिय को छोड़कर जीवों के भोग के सम्पादक जितने द्रव्य हैं वे सभी विषय' हैं। 'योनिजमयोनिजञ्च' इत्यादि से शरीर का भेद दिखलाते हैं। प्रकृत में 'योनि' शब्द का अर्थ है शुक्र और शोणित का मेल । उससे उत्पन्न होनेवाले 'योनिज' कहलाते हैं, एवं इसके विपरीत जो कार्य शुक्र और शोणित के मेल के बिना ही उत्पन्न होता है, उसे 'अयोनिज' कहते हैं। इस अर्थ को 'तत्रायोनिजम्' इत्यादि वाक्य से समझाते हैं।
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