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भाषानुवादसहितम्
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प्रशस्तपादभाष्यम् इन्द्रियं गन्धव्यञ्जकं सर्वप्राणिनां जलाधनभिभूतैः पार्थिवावयवैरारब्धं घ्राणम् ।
इन्द्रिय रूप पृथिवी वह है जिससे सभी प्राणियों को गन्ध का ज्ञान होता है। यह जलादि से अनभिभूत पार्थिव अवयवों से बनती है। इस इन्द्रिय का अन्वर्थ नाम है 'घ्राण' ।
न्यायकन्दली जरायुजम् । अण्डं बिम्बं तेन वेष्टितं जायते तदण्डजम् । केषां जरायुजं केषां चाण्डजमित्यत्राह-मानुषेत्यादि । मानुषा अस्मदादयः, पशवः छागाः, “अग्नीषोमीयं पशुमालभेत", "सप्तदश प्राजापत्यान पशूनालभेत" इति दर्शनात् । मृगाः कृष्णसारादयः, तेषां जरायुजं शरीरम् । इदञ्चोपलक्षणपरम्, अन्येषामपि चतुष्पदां जरायुजत्वात् । पक्षिण: प्रसिद्धाः। सरीसृपाः सस्तेिषामण्डजं शरीरम् । एतदपि न नियमार्थमन्येषामपि मत्स्यादीनामण्डजत्वात् ।
इन्द्रियमाह-इन्द्रियमिति । सर्वप्राणिनां गन्धव्यञ्जकं गन्धोपलम्भक यदिन्द्रियं तत् पार्थिवावयवैरारब्धम् । एतावता नियमो न लभ्यते यदेतदेव गन्धमभिव्यनक्ति नान्यत् पाथिवं द्रव्यम्, तदर्थमाह-- जलाधनभिभूतैः पार्थिवावयवैरारब्धं घ्राणम् । जलादिभिरनभिभूतैरप्रतिहतसामर्थ्यरवयवैरदृष्टवशादितरविलक्षणमारब्धमेतत्, अतो विशिष्टोत्पादाकारण ही (मानुषादि) शरीर जरायुज हैं । 'मानुष' इत्यादि पङ्क्तियों से समझाते हैं कि किन प्राणियों के शरीर जरायुज हैं और किन प्राणियों के अण्डज । 'मानुष' हैं हम लोग, पशु शब्द का अर्थ है छाग, मेमना आदि । छाग रूप अर्थ में पशु शब्द के प्रयोग करने का यह अभिप्राय नहीं है कि 'जरायुज' इतने ही हैं, क्योंकि सभी चौपाये भी जरायज ही हैं । 'पक्षि' शब्द का अर्थ प्रसिद्ध है। 'सर्प' शब्द से साँप अभिप्रत है। इन सभी योनिजों के शरीर अण्डज हैं । इसका यह भी अभिप्राय नहीं कि अण्डज इतने ही हैं, क्योंकि मांछ प्रभृति ओर भी अण्डज हैं ।
___'इन्द्रियम्' इत्यादि से पार्थिव इन्द्रिय का निरूपण करते हैं । सभी प्राणियों के गन्धव्यञ्जक' अर्थात् सभी प्राणियों के गन्ध प्रत्यक्ष की उत्पादक इन्द्रिय ही पार्थिव अवयवों से बनती है । किन्तु इससे यह सिद्ध नहीं होता कि यह इन्द्रिय रूप पार्थिवद्र व्य ही गन्ध के प्रत्यक्ष का उत्पादक है और कोई पार्थिव द्रव्य नहीं । इसी नियम की सूचना के लिए लिखते हैं कि 'जलाद्य नभिभूतैः पार्थिवावयवैरारब्धं घ्राणम्' अर्थात् जिन पार्थिव अवयवों का सामर्थ्य जलादिगत किसी विरोधी शक्ति से नष्ट नहीं है, अदृष्टवश उन पार्थिव अवयवों से आरब्ध यह घ्राणन्द्रिय रूप पार्थिव द्रव्य और पाथिव द्रव्यों से
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