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प्रकरणम् ]
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भाषानुवादसहितम्
प्रशस्तपादभाष्यम्
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तत्र भूप्रदेशाः प्राकारेष्टकादयो मृत्प्रकाराः । पाषाणा मणिवचादयः । स्थावरास्त णौषधिवृक्षलता व तान वनस्पतय इति ।
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उपल
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भेद से तीन प्रकार की है । भूमि रूप प्रदेश, दीवाल, ईटें आदि मृत्तिका के ही प्रभेद हैं । साधारण पत्थर से लेकर मणि एवं वज्र पर्यन्त सभी पत्थर पाषाण ही हैं । औषधि, वृक्ष, लता, अवतान, वनस्पति प्रभृति सभी स्थावर रूप पृथिवी हैं । न्यायकन्दली
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शरीरेन्द्रियाभ्यां विषयस्य स्वरूपविशेषं 'तु' शब्देन दर्शयन् भेदं दर्शयतिविषयस्त्विति । द्वयणुकादिप्रक्रमेणारब्ध इति साधारणरूपानुवादः । मृत्पाषाणस्थावरलक्षण इति । मृत्पाषाणस्थावरादिस्वभाव इत्यर्थः । तेषां मध्ये मृदं स्वरूपेण निर्द्धारयन्नाह - तत्रेति । तत्र भूप्रदेशाः स्थलनिम्नादयः प्राकारेष्टकादयः सर्वे ते मृत्प्रकाराः, मृत्प्रभेदा इत्यर्थः । पाषाणभेदमाह– पाषाणा इति । उपलाः शिलाः, मणयः सूर्य्यकान्तादयः, वज्रोऽशनिर्होरश्च । तृणमुलपादिः, औषधयः फलपाकान्ता गोधूमादय:, ये सपुष्पफलास्ते वृक्षाः कोविदारप्रभृतयः, लता प्रसिद्धैव, अवतन्वन्तीत्यवताना नाम विटपाः केतकी बीजपूरादयः, ये विना पुष्पं फलन्ति ते वनस्पतय औदुम्बरादयः । ननु स्वेच्छाधीनचेष्टाविरहः स्थावरत्वम्, तत्तु मृत्पाषाणयोरप्यस्ति । सत्यम्, तयो रूपान्तरस्यापि सम्भवादनेन रूपेणाभिधानं न कृतम् ।
'तु' शब्द से शरीर और इन्द्रिय में परस्पर भेद दिखलाते हुए विषय रूप पृथिवी का भेद 'विषयस्तु' इत्यादि से दिखलाते हैं । 'वह द्वघणुकादि क्रम से उत्पन्न होती है' यह कहना केवल उसके साधारण धर्म का अनुवाद है । 'मृत्पाषाणस्थावरलक्षणः' अर्थात् मिट्टी, पत्थर एवं स्थावर सभी वस्तु विषयरूपा पृथिवी हैं । इसमें मिट्टी को औरों से अलग करते हुए 'तत्र' इत्यादि ग्रन्थ लिखते हैं । इनमें चौरस एवं नीची ऊँची सभी भूमि 'भूप्रदेश' हैं। दीवाल, ईंटा प्रभृति सभी विषय मृत्तिका के ही प्रभेद हैं । 'पाषाणा:' इत्यादि से पत्थर का भेद कहते हैं । उपल' शब्द का अर्थ है शिला, अर्थात् साधारण पत्थर, 'मणि' है सूर्यकान्त प्रभृति 'वज्र' है अशनि ( इन्द्र का अस्त्र ) और हीरा । 'तृण' है 'उलप' प्रभृति, 'औषधि' वह कहलाता है जो अपने फल के पकने तक ही रहे, जैसे गेहूँ प्रभृति । जिसमें फूल और फल दोनों ही लगे वह 'वृक्ष' है, कोविदार प्रभृति । 'लता' शब्द से माधवी लता प्रभृति प्रसिद्ध ही है । अवतन्वन्ति इति अवताना:' इस व्युत्पत्ति के अनुसार बड़ा वृक्ष ही 'अवतात' है, जिसे 'विटप' कहते हैं ( पीपल आदि महावृक्ष) । (प्र०) जिसमें स्वाधीन चेष्टा न रहे वही स्थावर है । तदनुसार मिट्टी और पत्थर भी स्थावर के अन्तर्गत आ जाते हैं, फिर उनका अलग से निरूपण क्यों ? ( उ० ) ठीक है, किन्तु स्थावरत्व से
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