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प्रकरणम् ]
भाषानुवादसहितम्
प्रशस्तपादभाष्यम् चतुणां द्रव्यारम्भकत्वस्पर्शवच्चे। त्रयाणां प्रत्यक्षत्वरूपवत्त्वद्रवत्वानि ।
पृथिवी, जल, तेज और वायु इन चार द्रव्यों का द्रव्य को उत्पन्न करना और स्पर्श से युक्त होना ये दो साधर्म्य हैं ।
पृथिवी, जल, और तेज इन तीन द्रव्यों का प्रत्यक्षत्व, रूपवत्त्व और द्रवत्व ये तीन साधर्म्य हैं।
न्यायकन्दली बायैकैकेन्द्रियग्राह्यविशेषगुणवत्त्वानीति । बााँकैकेन्द्रियेण चक्षुरादिना ग्राह्या ये विशेषगुणा रूपादयस्तैस्तद्वत्ता पृथिव्यादीनामिति। अन्तःकरणग्राह्यत्वमप्येषां गुणानामस्ति, ततश्चैकैकेन्द्रियग्राह्यत्वमसिद्धम्, तदर्थं बाह्यग्रहणम् । एकैकग्रहणं स्वरूपकथनार्थम् ।
चतुर्णा द्रव्यारम्भकत्वस्पर्शवत्त्वे। चतुर्णां पृथिव्युदकानलानिलानाम् । द्रव्यारम्भकत्वं द्रव्यं प्रति समवायिकारणभावः । स च निजा शक्तिरेव । स्पर्शवत्त्वं स्पर्शसमवायः।
त्रयाणां प्रत्यक्षत्वरूपवत्त्वद्रवत्वानि। त्रयाणां क्षित्युदकतेजसां प्रत्यक्षत्वमिन्द्रियजज्ञानप्रतिभासमानता, न तु महत्त्वादिकारणयोगः, रूपवत्त्वहोती हैं । जहाँ शरीर से सम्बद्ध अर्थ का ग्रहण होता है, उस अर्थ में यह व्यवधान रहित है। इस प्रकार की बुद्धि होती है और जहाँ शरीर से असम्बद्ध अर्थ का ग्रहण होता है उस अर्थ में 'यह व्यवहित है' इस प्रकार की प्रतीति होती है।
बाह्य कैकेन्द्रियग्राह्यगुणवत्त्वानि' अर्थात् चक्षुरादि एक एक बाह्य इन्द्रियों से गृहीत होनेवाले जो रूप, रस, गन्ध, स्पर्श और शब्द, ये पांच विशेष गुण हैं, तद्वत्त्व' पृथिव्यादि पांच द्रव्यों का साधम्र्य है। ये रूपादि मन रूप अन्तरिन्द्रिय से भी गृहीत होते हैं, अतः उनमें एकैकेन्द्रियग्राह्यत्व' नहीं रह सकता, अत: 'बाह्य' पद का प्रयोग है। 'एकैक' पद केवल इस वस्तुस्थिति को समझाने के लिए है कि कथित रूपादि पांच विशेष गुण एक एक बाह्य इन्द्रिय से ही गृहीत होते हैं, संयोगादि की तरह दो इन्द्रियों से नहीं।
_ 'चतुर्णाम्' अर्थात् पृथिवी, जल, तेज और वायु इन चार द्रव्यों का 'द्रव्यारम्भकत्व' अर्थात् द्रव्य का समवायिकरणत्व साधर्म्य है । यह उनकी स्वाभाविक शक्ति है । 'स्पर्शवत्त्व' शब्द का अर्थ है-स्पर्श का समवाय ।।
'त्रयाणाम्' अर्थात् पृथिवी, जल और तेज इन तीन द्रव्यों का 'प्रत्यक्षत्व' साधयं है। इस 'प्रत्यक्षत्व' शब्द का अर्थ है इन्द्रिय के द्वारा उत्पन्न ज्ञान में प्रतिभासित
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