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न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम्
प्रशस्तपादभाष्यम्
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[ साधम्यंवैधर्म्य
ववम्, स्वसमार्थशब्दाभिधेयत्वम्, धर्माधर्मकत्वञ्च ।
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रूप अभिवावृत्ति के द्वारा 'अर्थ' शब्द के द्वारा समझा जाना और ( ५ ) धम्र्मा -
धर्म्मकर्तृत्व ।
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न्यायकन्दली
सबन्ध:
द्रव्यादीनां त्रयाणां सत्तासम्बन्धः सत्तया सामान्येन समवायरूपो द्रव्यगुणकर्म्मणां साधर्म्यम् । यथा चैतेषु सत्तासम्बन्धस्तथोपपादितम् । इदन्त्विह निरूप्यते - कि सत्तासम्बन्धः सतोऽसतो वा ? सतश्चेत् प्राक् सत्तासम्बन्धात् नेवासावर्थ इति व्यर्था सत्ता ? अथासतः सम्बन्धः ? खरविषाणादिष्वपि सत्ता स्यात् । नित्येषु तावत्पूर्वापरभावानभ्युपगमः । अनित्येषु प्रागसत एव सत्ता, कारणसामर्थ्यात् । न च खरविषाणादिष्वतिप्रसङ्गः, तदुत्पत्तौ कस्यचित् सामर्थ्याभावात् ।
अन्यदपि साधर्म्यं द्रव्यादीनां त्रयाणां कथयति - सामान्यविशेषवत्त्वञ्चेति । अनुवृत्तिव्यावृत्तिहेतुत्वात् सामान्यविशेषा द्रव्यत्वादयस्तः सह सम्बन्धो द्रव्यादीनाम्, स च समवाय एव ।
" द्रव्यादीनां त्रयाणां सत्तासम्बन्धः" अर्थात् सत्ता नाम की जाति के साथ समवाय नाम का सम्बन्ध द्रव्य, गुण और कर्म्म इन तीनों का साधर्म्य है । इन तीनों में सत्ता जाति का सम्बन्ध किस प्रकार है ? यह कह चुके हैं (प्र०) अब यहाँ विचार करना है कि सत्ता जाति 'सत्' अर्थात् पहिले से विद्यमान वस्तुओं के साथ सम्बद्ध होती है ? या असद्वस्तुओं के साथ ? अगर सत्ता सद्वस्तुओं के साथ सम्बद्ध होती है तो फिर सत्ता जाति की कल्पना ही व्यर्थ हो जाती है, क्योंकि सत्ता सम्बन्ध के बिना भी वे सत् हैं ही। अगर असत् वस्तुओं के साथ सत्ता सम्बद्ध होती है तो फिर गदहे के सींग प्रभृति पदार्थों को भी सत्ता माननी पड़ेगी । ( उ० ) नित्य वस्तुओं में तो पहिले पीछे की कोई बात ही नहीं उठती है । अनित्य वस्तुओं के प्रसङ्ग में यह कहना है कि पहिले से अविद्यमान वस्तुओं के साथ ही कारणों के (विशिष्ट) बल से सत्ता सम्बद्ध होती है । गदहे के सींग प्रभृति अलीक पदार्थों की आपत्ति का भी प्रसङ्ग नहीं आता है, क्योंकि किसी भी वस्तु में उनके उत्पादन का बल ही नहीं है । 'सामान्यविशेषवत्त्वश्व' इत्यादि से द्रव्यादि तोन पदार्थों के और भी साधर्म्य कहते हैं । द्रव्यत्वादि जातियाँ अपने विभिन्न आश्रयों में 'द्रव्यम्' इस एक आकार की ( अनुवृत्ति) बुद्धि का कारण होने से 'सामान्य' हैं एवं अपने आश्रयों को औरों से भिन्न रूप में समझाने के कारण 'विशेष' भी हैं । सामान्य एवं विशेष इन दोनों शब्दों से समझी जानेवाली द्रव्यत्वादि जातियों के साथ द्रव्यत्वादि तीनों वस्तुओं का सम्बन्ध है । वह सम्बन्ध समवाय ही है ।