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प्रकरणम्
भाषानुवादसहितम्
प्रशस्तपादभाष्यम् समानदेशत्वञ्च ।
पृथिव्यादीनां पञ्चानामपि भूतत्वेन्द्रिय प्रकृतित्ववादैकैकेन्द्रियग्राह्यविशेषगुणवत्त्वानि । आधार होना ) ये तीन साधर्म्य हैं ।
पृथिवी, जल, तेज, वायु और आकाश इन पाँच द्रव्यों के भूतत्व, इन्द्रियप्रकृतित्व और एक एक बाह्येन्द्रिय से गृहीत होनेवाले विशेष गुण ये तीन साधर्म्य हैं।
न्यायकन्दली आकाशादीनाम, न तु सर्वत्र गमनम्, तेषां निष्क्रियत्वात् । परममहत्त्वमियत्तानवच्छिन्नपरिमाणयोगित्वम् । सर्वसंयोगिसमानदेशत्वं सर्वेषां संयोगिनां मूर्तद्रव्याणामाकाशः समानो देश एक प्राधार इत्यर्थः । एवं दिगादिष्वपि व्याख्येयम् । यद्यप्याकाशादिकं सर्वेषां संयोगिनामाधारो न भवति, आधारभावेनानवस्थानात्, तथापि सर्वसंयोगाधारत्वात् सर्वसंयोगिनामाधार इत्युच्यते, उपचारात् । अत एव सर्वगतत्वमित्यनेनापुनरुक्तता । तत्र हि सर्वैः सह संयोगोऽस्तीत्युक्तम् । इह तु सर्वेषामाधार इत्युच्यते।
पृथिव्यादीनामाकाशान्तानामितरवैधपेण साधर्म्य कथयतिपृथिव्यादीनामिति । भूतत्वं भूतशब्दवाच्यत्वम् । एकनिमित्तमन्तरेणानेकेषु मत्तं द्रव्यों के साथ संयोग ही सर्वगतत्व है, आकाशादि का सभी मूर्त द्रव्यों में जाना नहीं, क्योंकि वे सभी क्रियाशून्य हैं । 'परममहत्त्व' शब्द का अर्थ है इयत्ता से रहित परिमाण का (सबसे बड़े परिमाण का) सम्बन्ध । 'सर्वसंयोगिसमानदेशत्व' अर्थात् आकाश संयोग से युक्त सभी मूर्त द्रव्यों का एक आधार है। इसी प्रकार दिशा में भी व्याख्या करनी चाहिये । यद्यपि आकाशादि संयोग से युक्त पदार्थों का आधार नहीं है, किन्तु उनके सभी संयोगों का आधार है, अतः उनमें 'सर्वाधार' शब्द का लाक्षणिक प्रयोग होता है। अतएव 'सर्वगतत्व' के बाद 'सर्वसंयोगिसमानदेशत्व' के कथन से पुनरुक्ति की आपत्ति नहीं होती है, क्योंकि 'सर्वगतत्व' शब्द से आकाशादि में सभी मूतं द्रव्यों का संयोग प्रतिपादित होता है और 'सर्वसंयोगिसमानदेशत्व' शब्द से लक्षणा वृत्ति के द्वारा उनमें सर्वाधारत्व का प्रतिपादन होता है।
पृथिवी से लेकर आकाश पर्यन्त पाँच द्रव्यों का साधर्म्य औरों से असाधारण्य दिखलाते हुए कहते हैं । 'भूत' शब्द का अर्थ है 'भूत' शब्द से अभिधावृत्ति के द्वारा कहा जाना। यद्यपि पृथिवी प्रभृति पाँच द्रव्यों में सभी को समझाने के लिए एक शब्द की प्रवृत्ति का नियामक कोई एक धर्म नहीं है, किन्तु तब भी 'अक्ष' शब्द
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