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प्रकरणम् ]
भाषानुवादसहितम्
प्रशस्तपादभाष्यम् षण्णामपि पदार्थानामस्तित्वाभिधेयत्वज्ञेयत्वानि । ( द्रव्यादि ) छहों पदार्थों का (१) अस्तित्व, (२) अभिधेयत्व और (३) ज्ञेयत्व ये तीन साधर्म्य हैं ।
न्यायकन्दली धर्मान् परित्यज्य धर्मिणामुद्देशः कृतः, धम्मिणां संज्ञामात्रेण सङ्कीर्तनं कृतमिदानी धर्मा उद्दिश्यन्त इति भावः। यद्यपि पूर्व द्रव्यादीनां विभागः कृतस्तथाप्युद्देशः कृत इत्युक्तम्, विभागस्य नामधेयसङ्कीर्त्तनमात्रेणोद्देशेऽन्तर्भावात् ।
यद्यपि धर्माः षट्पदार्थेभ्यो न व्यतिरिच्यन्ते, किन्तु त एव अन्योन्यापेक्षया धा धम्मिणश्च भवन्तीति । तथापि तेषां धम्मिरूपतया परिज्ञानार्थं पृथगुद्देशं करोति—षण्णामपीति। अस्तित्वं स्वरूपवत्त्वम्, षण्णामपि साधर्म्यम्, यस्य वस्तुनो यत् स्वरूपं तदेव तस्यास्तित्वम् । अभिधेयत्वमप्यभिधानप्रतिपादनयोग्यत्वम्, तच्च वस्तुनः स्वरूपमेव । भावस्वरूपमेवावस्थाभेदेन ज्ञेयत्वमभिधेयत्वञ्चोच्यते।
आश्रितत्वञ्च परतन्त्रतयोपलब्धिः, न समवायलक्षणा वृत्तिः, समवाये तदभावात् । इदञ्चाश्रितत्वं चतुर्विधेषु परमाणुषु आकाशकालसमाधान सङ्गति प्रदर्शन के द्वारा 'एवम्' इत्यादि पङ्क्ति से दिखलाते हैं। 'एवम्' पहिले कहे हुये सन्दर्भ से. 'धम्मॆविना' धर्मों को छोड़कर 'धम्मिणामुद्देशः कृतः' अर्थात् धर्मियों को ही केवल उनके नाम के द्वारा कहा है, अब उनके धर्मों को उनके नाम से कहते हैं । यद्यपि पहिले के ग्रन्थों से पदार्थों का विभाग भी किया है, फिर भी 'उद्देशः कृतः' यही वाक्य कहा है, क्योंकि नामों के द्वारा पदार्थों के कथन रूप उद्देश में ही विभाग का भी अन्तर्भाव हो जाता है।
यद्यपि ये धर्म भी इन छ: पदार्थों के ही अन्तर्गत हैं, तथापि वे ही यथासम्भव अपने में एक दूसरे के धर्म और धर्मी कहलाते हैं. फिर भी धर्मी रूप से उनको समझाने के लिए 'षण्णाम्' इत्यादि सन्दर्भ के द्वारा अलग से उनको कहते हैं। 'अस्तित्व' शब्द का अर्थ है 'स्वरूप', अर्थात् वस्तुओं का अपना असाधारण रूप ही अस्तित्व है। यह 'अस्तित्व' द्रव्याणि छहों पदार्थों में रहनेवाला धर्म है। 'अभिधेयत्व' शब्द का अर्थ है अभिधान, अर्थात् शब्द से कहे जाने की क्षमता, वह भी वस्तुओं का स्वरूप ही है। वस्तुओं का यह स्वरूप ही अवस्थाओं के भेद से अभिधेयत्व ज्ञयत्व प्रभृति शब्दों से कहा जाता है।
परतन्त्र रूप से ज्ञात होना ही 'आश्रितत्व' शब्द का अर्थ है। समवाय सम्बन्ध से कहीं रहना (आश्रितत्व शब्द का अर्थ) नहीं है, क्योंकि समवाय कहीं पर भी समवाय सम्बन्ध से नहीं रहता है। पृथिवी, जल, तेज और वायु इन चारों पदार्थों के परमाणुओं
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