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न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम्
[ उद्देशप्रशस्तपादभाष्यम् गुणाश्च रूपरसगन्धस्पर्शसंन्यापरिमाणपृथक्त्वसंयोगविभागपरत्वापरत्वबुद्धिसुखदुःखेच्छाद्वेषप्रयत्नाश्चेति कण्ठोक्ताः सप्तदश ।
स्वयं सूत्रकार के द्वारा कथित ये सत्रह गुण हैं
(१) रूप, (२) रस, ( ३ ) गन्ध, (४) स्पर्श (५) संख्या, ( ६ ) परिमाण, (७) पृथक्त्व, (८) संयोग, (६) विभाग, (१०) परत्व (११) अपरत्व, (१२) बुद्धि, ( १३ ) सुख, (१४) दुःख (१५ ) इच्छा, ( १६ ) द्वेष और ( १७ ) प्रयत्न ।
न्यायकन्दली चक्षुषः सामर्थ्यम, तद्भावभावित्वात्; यथालोकाभाव एव त्वन्मते। नन्वेवं तहि सूत्रविरोधः “द्रव्यगुणकर्मनिष्पत्तिवैधाद्धाभावस्तमः” इति ? न विरोधः, भाऽभावे सति तमसः प्रतीते भावस्तम इत्युक्तम् ।
ईश्वरोऽपि बुद्धिगुणत्वादात्मैव, न तु षड्गुणाधिकरणश्चतुर्दशगुणाधिकरणाद् गुणभेदेन भिद्यते, मुक्तात्मभिर्व्यभिचारात् ।
गुणा रूपादयः कण्ठोक्ता सूत्रकारेण कथिता रूपरसेत्यादिना । मानते हुए भी तेज के अभावरूप अन्धकार के प्रत्यक्ष में आलोक से निरपेक्ष चक्षु को ही कारण मानते हैं । (प्र०) अन्धकार को अगर तेज का अभाव न मानें तो सूत्र का विरोध होगा, क्योंकि उसमें कहा है कि द्रव्य, गुण और कर्म इन तीनों के उत्पत्तिकम से अन्धकार की उत्पत्ति का क्रम भिन्न है, अतः भा' अर्थात् तेज का अभाव ही 'तम' है । (उ०) तेज का अभाव होने पर ही अन्धकार की प्रतीति होती है अतः सूत्रकार ने 'भामावस्तमः' ऐसा औपचारिक प्रयोग किया है।
ईश्वर भी बुद्धियुक्त होने के कारण आत्मा ही है । बुद्धि प्रभृति छः गुणों से युक्त परमात्मा चौदह गुणों से युक्त जीवात्मा से गुणभेद के कारण भिन्न जातीय द्रव्य नहीं हैं. क्योंकि ऐसा (नियम) मानने पर मुक्त जीव में व्यभिचार होगा ।
'गुणाः' अर्थात् रूपादि गुण 'कण्ठोक्ताः' अर्थात् सूत्रकार महर्षि कणाद के द्वारा "रूपरसगन्धस्पर्शाः, संख्याः, परिमाणानि, पृथक्त्वम्, संयोगविभागौ, परत्वापरत्वे, बुद्धयः, सुख
१. 'आयुर्वं घृतम्,' 'लाङ्गलम्' 'जीवनम्, इत्यादि प्रयोग जैसे कारण और कार्य को एक समझकर लक्षणा के द्वारा होते हैं, वैसे ही प्रकृत में भी तेज के मभाव की प्रतीति के कारण में अन्धकार के अभेद का आरोप कर अन्धकार पद की 'भाभाव' में लक्षणा के द्वारा सूत्रकार ने 'भाभाव' अर्थात् तेज के अभाव को 'तम' कहा है।
२. अभिप्राय यह है कि पहिले 'नवैव द्रव्याणि" ऐसा अवधारणात्मक प्रयोग है। किन्तु जीव और ईश्वर के परस्पर भिन्न द्रव्य होने के कारण द्रव्य दश हो
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