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न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम्
[ उद्देश
प्रशस्तपादभाष्यम् नित्यद्रव्यवृत्तयोऽन्त्या विशेषाः । ते खल्वत्यन्तव्यावृत्तिहेतुत्वाद्विशेषा एव।
सभी नित्य द्रव्यों में रहनेवाले 'अन्त्य' ही 'विशेष' हैं। वे ( अपने आश्रय को और पदार्थों से भिन्नत्व बुद्धिरूप ) व्यावृत्ति के ही कारण हैं। अतः वे 'विशेष' ही हैं ( अपने आश्रयों को परस्पर समानरूप से न समझाने के कारण 'सामान्य' शब्द के गौण अर्थ भी नहीं हैं।
न्यायकन्दली नित्यद्रव्यवृत्तयोऽन्त्या विशेषा इति । नित्यद्रव्येष्वेव वर्तन्त एव ये ते विशेषा इति । नित्यद्रव्येष्वेवेति द्रव्यगुणकर्मसामान्यानां व्यवच्छेदः । द्रव्यगुणकर्माणि द्रव्येष्वेव वर्तन्ते, न नित्येष्वेवेति । सामान्यानि तु न द्रव्येज्वेव । न नित्येष्वेव वर्तन्त एवेति बुद्धिशब्दादीनां व्यवच्छेदः, तेषां समस्तनित्यद्रव्यप्राप्त्यभावात् । ननु कि विशेषा एव किं वा द्रव्यत्वादिवदुभयरूपा ? इति । तत्राह-ते खल्विति । खलुशब्दो निश्चये, नित्यद्रव्यवृत्तयो ये विशेषास्ते विशेषा एव निश्चिता न तु सामान्यान्यपि भवन्तीत्यर्थः। अत्यन्तं सर्वदा,व्यावृत्तेरेव स्वाश्रयस्येतरस्माद्वयवच्छेदस्यैव, हेतुत्वात् कारणत्वादिति । यथा चेदं तथोपरिष्टादुपपादनीयम् ।
जो (पदार्थ) केवल सभी नित्य द्रव्यों में रहें और अवश्य ही रहें वे ही 'विशेष' हैं । 'नित्य द्रव्यों में ही रहें' (नित्यद्रव्येष्वेव) इस अंश से द्रव्य, गुण और कर्म इन तीनों में विशेष के लक्षण की अतिव्याप्ति की शङ्का मिट जाती है, क्योंकि वे यद्यपि द्रव्यों में ही रहते हैं, तथापि नित्य द्रव्यों में ही नहीं रहते (किन्तु अनित्य द्रव्यों में भी रहते हैं)। सामान्य पदार्थ केवल द्रव्य में ही नहीं रहता है, (गुणादि में भी रहता है, अतः सामान्य में विशेष लक्षण की अतिव्याप्ति नहीं है)। नित्यद्रव्येष्वेव वर्त्तत एव' इस वाक्य से शब्द और बुद्धि इन दोनों में विशेष लक्षण की अतिव्याप्ति वारित होती है; क्योंकि शब्दादि यद्यपि नित्य द्रव्यों में ही रहते हैं, किन्तु सभी नित्य द्रव्यों में नहीं रहते । क्या ये 'विशेष' ही हैं ? या द्रव्यत्यादि की तरह सामान्य और विशेष दोनों ही हैं ? इस संशय को 'ते खलु' इत्यादि वाक्य से हटाते हैं । यहाँ 'खलु' शब्द 'निश्चय' अथं का बोधक है। अभिप्राय यह है कि नित्य द्रव्यों में रहनेवाले ये 'विशेष' निश्चित रूप से केवल 'विशेष' ही हैं, ये कभी सामान्य नहीं होते। क्योंकि ये बराबर अपने आश्रय को और पदार्थों से भिन्न रूप में ही समझाते हैं। यह जिस प्रकार उत्पन्न होता है, वह आगे दिखाया जाएगा।
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