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२३ न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम्
[ उद्देशन्यायकन्दली चारात् स्पर्शवद्रव्यस्य महतः प्रतिघातधर्मत्वात् तमसि सञ्चरतः प्रतिबन्धः स्यात्, महान्धकारे च भूगोलकस्येव तदवयवभूतानि खण्डावयविद्रव्याणि प्रतीयेरनिति । तदयुक्तम्, यथा प्रदीपानिर्गतैरवयवैरदृष्टवशादनुद्भूतस्पर्शमनिबिडावयवमप्रतीयमानखण्डावयविद्रव्यप्रविभागमप्रतिघातिप्रभामण्डलमारभ्यते, तथा तम:परमाणुभिरपि तमो द्रव्यम् । तस्मादन्यथा समाधीयते । तम:परमाणवः स्पर्शवन्तस्तद्रहिता वा ? न तावत् स्पर्शवन्तः, स्पर्शवतस्तत्कार्य्यस्य क्वचिदनुपलम्भात् । अदृष्टव्यापाराभावात् स्पर्शवद्रव्यानारम्भका इति चेत् ? रूपवन्तो वायुइन आठ गुणों से युक्त एवं इन नौ द्रव्यों से भिन्न 'तम'(अन्धकार)नाम का द्रव्य है ? इस प्रश्न का समाधान(१)कोई यह देते हैं कि यह निश्चित है कि जहाँ रूप रहे वहां स्पर्श भी अवश्य रहे । एवं स्पशवाले महान् द्रव्य का यह स्वभाव है कि वह प्रतिघात करे। अगर अन्धकार (रूपयुक्त) द्रव्य है (फिर स्पर्शयुक्त भी अवश्य ही है),तो उसका प्रतिघातधर्मक होना भी अनिवार्य है। अगर ऐसी बात है तो) अन्धकार में चलते हुए मनुष्य उससे टकरा कर अवश्य ही रुक जाते।(तस्मात् अन्धकार कोई द्रव्य नहीं है।अतः नवैव द्रव्याणि' यह अवधारण ठीक है)। (२)कोई(यह दूसरा समाधान करते हैं कि जैसे)किसी महाभूखण्ड की प्रतीति होने पर उसके अवयवों की भी प्रतीति अवश्य होती है । (वैसे ही) अन्धकार अगर कोई महान् द्रव्य होता तो (उसकी प्रतीति की तरह) उसके अवयवों को भी प्रतीति अवश्य होती। (किन्तु अन्धकार के अवयवों की प्रताति नहीं होती है), अतः अन्धकार कोई द्रव्य नहीं है और इसीलिए वह महान् भी नहीं है। किन्तु ये दोनों ही समाधान असङ्गत है, क्योंकि जैसे प्रदीप से निकले हुए तेज के अवयवों से अदृष्टवश अनुभूत र श से युक्त अनिविड़(पतले) प्रभामण्डलरूप प्रकाश नाम के द्रव्य की उत्पत्ति होती है । एवं इस महान् द्रव्य के अवयवों की उपलब्धि नहीं होती है और उस (आलोक ) में चलते हुए मनुष्य की गति रुकती भी नहीं है। इसी प्रकार अन्धकार के परमाणुओं से अन्धकार की उत्पत्ति होगी । (इसमें अन्धकार के अवयवों की अनुपलब्धि और उससे मनुष्यों कान टकराना, ये दोनों बाधक नहीं हो सकते) अतः इसका दूसरी रीति से समाधान करना चाहिए। (समाधान के लिए यह पूछना है कि)(प्र.) अन्धकार के परमाणुओं में स्पर्श है या नहीं ? (उ०)नहीं है, क्योंकि उनके किसी भी कार्य में स्पर्श की उपलब्धि नहीं होती । (प्र०) अन्धकार के परमाणुओं में स्पर्श है, किन्तु उससे स्थूल अन्धकार में अदृष्टरूप कारण के अभाव से स्पर्श की उत्पत्ति नहीं होती। अतः अन्धाकार के परमाणु स्वयं स्पर्शयुक्त होते हुए भी स्पशयुक्त स्थूल अन्धकार को उत्पन्न नहीं करते। द्रव्यों में से वह किसी में भी अन्तर्भूत नहीं है। क्योंकि गन्ध की उपलब्धि न होने से वह पृथिवी नहीं है। स्पर्श की प्रतीति न होने के कारण वह जल, तेज और वायु भी नहीं है। उसमें रूप का प्रत्यक्ष होता है, अतः वह आकाश, काल, दिग, आत्मा और मन भी नहीं है। इस प्रकार कथित नौ द्रव्यों में उसका अन्तर्भाव नहीं है। गुण प्रतीति के कारण द्रव्य अवश्य ही हैं। तस्मात् 'तम' कोई दशवां स्वतन्त्र द्रव्य ही है। किन्तु तब "नवैव द्रव्याणि" यह अवधारण असङ्गत हो जाताहै।
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