Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगदारसूत्रे तीति धर्मः तस्य कथनं धर्मकथा अहिंसादि धर्मप्ररूपणरूपा, तया, वर्तमानोऽस्तीति आगमतो द्रव्यावश्यकमुच्यते। ननु वाचनादिभितत्रावश्यक शास्त्रे वर्तमानः साधुः कथमागमतो द्रव्यावर के भवतीति शिष्यशहां निराकर्तुमाह-'नो अणुप्पेहाए' नो अनुप्रेक्षया-वाचनादिभिस्तत्र वर्तमानोऽपि शास्त्रार्थानुचिन्तनरूपयाऽनुप्रेक्षया नो वर्तमानो भवति अनुप्रेक्षया युक्तो न भवतीत्यर्थः, अनः स आगमतो द्रव्यावश्यकं भवति । अनुप्रेक्षयाचाऽवमानः कथमागमतो द्रव्यावश्यक भवतीति स्वयमाह सूत्रकार:-'कम्हा' इत्यादिना । कस्मात् आगमतो द्रव्यावश्यकं भवति ? उनरयति-'अणुवओगो द मिति व?' अनुपयोगी द्रव्यमिति कृत्वा-उपयुज्यते -वस्तुपरिच्छेदं करोति जीवोऽनेनेत्युपयोगः। करणे घञ् प्रत्ययः। उपयोगःहुए जीवों को सुगति में धारणकराने वाले (पहोंचाने वाले) धर्म की कथा से-अर्थात् अहिंसादि धर्म की प्ररूपणा से-तमान है-इस तरह आगम की अपेक्षा छह साधु द्रच्यावश्यक कहा गया है। यहां ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिये, कि वाचनादिरूप क्रियाओं से उस आवश्यक शास्त्र में वर्तमान वह साधु आगम की अपेक्षा द्रव्यावश्यक कैसे है क्योंकि (नो अणुप्पेहाए) इस पद से सूत्रकार ने इस शंका का समाधान किया है-वे कहते हैं कि वाचनादिरूप क्रियाओं से आवश्याशास्त्र में वर्तमान रहा हुआ भी वह साधु शास्त्र के अर्थ का अनुचिन्सन करने रूप अनुप्रेक्षा चिन्तन से उसमें वर्तमान नहीं है । इसलिये वह आगम से द्रव्यावश्यक है। (कम्हा अगुपयोगो दामिति) क्योंकि "अनुपयोगो द्रव्यं" ऐसा शास्त्र का वचन है। इस का तात्पर्य यह हैं कि-जीव जिस के द्वारा वस्तु का परिच्छेद करता है उस का नाम उपयोग है । उप उपसर्ग पूर्वक युजू કે અહિંસાદિ ધર્મની પ્રરૂપણા વડે વર્તમાન વિદ્યમાન છે. આ રીતે આગમની અપેક્ષાએ તે સાધુને દ્રવ્યાવશ્યક કહેવામાં આવે છે. તે
અહી એવી શંકા ન કરવી જોઈએ કે વાચનાદિ ક્રિયાઓ વડે તે આવશ્યક સૂત્રમાં વર્તમાન તે સાધુ આગમની અપેક્ષાએ દ્રવ્યાવશ્યક કેવી રીતે સંભવી શકે છે? સૂત્રકારે આ સૂત્રપાઠ દ્વારા તે શંકાનું સમાધાન કર્યું છે . . . (नो अणुप्पेहाए) पायना३ि५ या 43 २१।११५४ मा वर्तमान । એ તે સાધુ શાસ્ત્રને અર્થનું અનુચિન્તન કરવારૂપ અનુપ્રેક્ષાની અપેક્ષાએ તેમાં नभान डात नथी ते ॥२0 ते मनी अपेक्षा द्रव्या१३५४ छ. (क.म्हा अणुपयोगों दामिति) २९ , शास्त्रनु मे क्यन छ है "अनुपयोगो द्रव्य" આ કથનને ભાવાર્થ નીચે પ્રમાણે છે
છવ જેના દ્વારા વસ્તુને પરિચ્છેદ કરે છે (વસ્તુનું જ્ઞાન મેળવે છે, તેનું
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