Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगचन्द्रिका टीका-यू. २० लौ ककद्रव्यावश्य निरूपणम् १३३ इमे राजेश्वरतलबरमाडम्बिककौटुबिकेभ्यश्रेष्ठिसेनापतिसार्थवाहप्रभृतयः कल्पे प्रादुष्प्रभातायां रजन्यों सुविमलायाँ फुल्लोत्पलकमल कोमलोन्मीलिते यथापाण्डुरे प्रभाते रक्ताशोकप्रकाशकिंशुकशुकमुखगुजार्द्धरागसदृशे कमलाकरनलिनीषण्डबोधके उत्थिते सूर्ये सहस्ररम्मौ दिनकरे तेजसा ज्वलति मुखधावनदन्तप्रक्षालन र्कि) लौकिक द्रव्यावश्यकरुप प्रथम भेद का का स्वरूप है ? (लो.यं दवावस्मयं) उत्तर-लौकिक द्रव्यावश्यक का स्वरूप इस प्रकार से है-(जे इमे राईसर, तलवरमाडंबिय, कोडुबिय, इभ, सेट्टि, सेणावइ, सत्यवाहप्पभिइओ) जो ये राजेश्वर-मांडलिकनगपति, ऐश्वर्य संप नव्यक्ति, तलन्दर, माडंबिक कौटुम्बिक, इभ्य, श्रेष्ठी, सेनापति, सार्थवाह आदि मनुष्य (कल्लं) सामान्य प्रभात के होने पर (पाउ'पभाषाए रमणीए) प्रारंभिक अवस्था प्राप्त है प्रभात जिस में ऐसी रात्रि के होने पर (सुविमलाए, फुल्लुप्पल कमल कोमलुम्मिलियम्भि) तथा पूर्व की अपेक्षा स्फुटतर प्रकाश संपन्न गत्रि के होने पर विकसित कमल के पत्रों के और मृगविशेष के नयनों के सुकुमार उन्मीलनवाले (अहापंडुरे) यथा योग्य पीतमिश्रित शुक्ल (पभाए) प्रभात के होने पर (रत्तासोगप्पगापकि सुयसुयमुहगुजद्धरागसरिसे) तथा रक्त अशोकवृक्ष की कांति के तथा पलाश पुष्प; और शुक मुख एवं गुंजा के राग के सदृश (कमलागरण लिणिसंडबोहए) यमलों की उन्पत्ति भू मरूप हुदादिजलाशयों में पद्मवनों के विकाशक (सहस्सरसिमि दध्वापस्सयं किं ?) सी. द्र०या११५४ ३५ ते प्रथम मेनु २१३५ छ?
उत्तर--(लाइयं दवावास) alls४ द्रव्यापश्यनु २१३५ २१प्रानु
(जे इमे राईसर, तलवर, माडंविय, काडु बिय, इन्भ, सेहि, सेणावइ, सत्थवाहप्पभिडओ) रे । २०५२ (भांउसि नरपति- वयसपन्न व्यति), तस५२, मांस, पोटु मि४, ४क्ष्य, cिal, सेनापति, साथ पाई म मनुष्या (कल्लं) सामान्य मातtun ci, (पाउप्पभायाए रयणीए) त्रि व्यतीत ने हिवरना प्रालि मरथा३५ लातन प्रारम Nai (मुनिमल.ए, फुल्लुपलकमलकोमलुम्मिलियग्मि) तथा पिसार ६७ने पहेलi ता २५टत२ પ્રકાશથી સંપન્ન, વિકસિત કમલપત્રથી સંપન અને મૃગવિશેષના નયનના સુકુમાર
भीसनथी युत, (अहापंडरे) यथायोग्य पातमिश्रित शुरु (माछपी) पभाए) प्रभाव थता, (रत्तासोगपगास किंसुय सुयमुहगुंबद्धगगसरिसे) तथा माल वृक्षना સમાન, પલાશપુષ્પ સમાન તથા શુકના મુખ સમાન અને શું જાઉં (ચણોઠીને અર્ધ मा) समान ale, (कमलागरनलिणिसंडबोहए) मोना उत्पत्ति स्थान३५ all ाशयामा पवनाने विसित ४२ना२, (सहस्सास्सिम्मि दिणयरे तेयसा
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