Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १२२ तिर्यग्लोकक्षेत्रानुपूर्वीनिरूपणम् ५२९ द्वीपः। ततश्वारुणवरसमुद्रः। ततः कुण्डलद्वीपः । ततश्च कुण्डलसमुद्रः। ततो रुचक द्वीपः । ततश्च रुचकसमुद्रः । तथा-असंख्येयानाम् असंख्येयानाम् द्वीपानामन्ते आभरणवस्त्रगन्धोत्पतिलकाद्युपलक्षिताः आभरणवस्त्रगन्धोत्पलतिलकादि स्वयम्भूरमणान्ताः द्वीपाः, तत्तन्नामानः समुद्राश्च सन्ति। स्वयम्भूरमणसमुद्रः-शुद्धोदक रसास्वादः। मूले पुष्कराधारभ्य स्वयम्भूरमणान्ताः शब्दा द्वीपसमुद्रोभयवाचका हैं उनके नाम आभरण आदि के ऊपर हैं । जो द्वीप का नाम है वही नाम बेढे हुए समुद्र का है । स्वयंभूरमण समुद्र के जलका स्वाद शुद्धोदक रसास्वाद जैसा है मूल में-पुष्कर से लेकर स्वयंभूरमण तक के शब्द द्वीप और समुद्र के वाचक हैं। तात्पर्य कहनेका यह है ! कि रुचकद्वीप और रुचकसमुद्र के आगे आभरण द्वीप और आभरणसमुद्र है । इसके बाद-वस्त्र द्वीप और वस्त्र समुद्र है। इसके आगे गंध द्वीप
और गंध समुद्र है इसी प्रकार से उत्पल, तिलक पृथिवी निधि, रत्न वर्षधर, इद, नदी, विजय वक्षस्कार, कल्पेन्द्र (कूरु मंदर आवासा कूडानक्खत्तचंदसूरा य देवे नागे जक्खे भूए य सयंभूरमणे य ३) कुरु, मन्दर आवासकूट, नक्षत्र, चन्द्र सूर्य देव, नाग यक्ष भून, और स्वयंभूरमण इन नामों वाले असंख्यात द्वीप और असंख्यात समुद्र है । जंबूद्वीप नाम का जो द्वीप है, वह जंबूवृक्ष से युक्त है। इसलिये इसका नाम जंबूद्वीपहुआ है। इस जंबूद्वीप को वेष्टित हुए गोल चूड़ी के आकार के आकार जैसा लवणસમુદ્ર આદિ અસંખ્યાત દ્વીપસમુદ્ર આવેલા છે. દ્વીપનાં જે નામે છે, એજ નામે તેમને વીંટળાયેલા સમુદ્રોના માટે પણ વપરાય છે.
વયંભૂરમણ સમુદ્રનું પાણી શુદ્ધ પાણીના જેવાં સ્વાદવાળું છે. પુષ્કરથી લઈને સ્વયંભૂરમણ પર્યન્તના શબ્દ દ્વીપ અને સમુદ્રો-બનેનાં વાચક છે એમ સમજવું આ કથનનું તાત્પર્ય એ છે કે ચકદ્વીપ અને ચકસમુદ્રથી આગળ જતાં આભરણદ્વીપ અને આભરણ સમુદ્ર આવે છે, ત્યાર બાદ વસ્ત્રદ્વીપ અને વસમુદ્ર આવે છે, ત્યાર બાદ ગંધદ્વીપ અને ગંધસમુદ્ર આવે છે, त्या२ मा ५४, तिas, पृथ्वी निधि, २१५५२, नही, विय१९२४२,
पेन्द्र (कुस्मंदर आवासा कूडानखत्तचंदसूरा य, देवे नागे जक्खे भए य सयंभूरमणे य ॥३॥) ३२, भन्४२, मावास, नक्षत्र, यन्द्र, सूर्य, हे, નાગ, યક્ષ, ભૂત અને સ્વયંભૂરમણ આ નામેવાળાં અસંખ્યાત દ્વીપ અને અસંખ્યાત સમુદ્રો આવે છે. જમ્બુદ્વીપ નામને જે દ્વીપ છે તે જંબૂવૃક્ષથી યુક્ત હોવાને કારણે તેનું નામ જંબૂદ્વીપ છે. આ જબૂદ્વીપને ઘેરીને વલયના
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