Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगद्वारसूत्रे और पारिणामिक इन तीन भावों के संयोग से निष्पन्न हुआ सान्निपातिक भाव कैसा है ?
उत्तर-(खइयख भोवसमिय पारिणामियनिष्फण्णे)क्षायिक क्षायोपशमिक और पारिणामिक इन तीन भावों के संयोग से निष्पन्न हुआ सान्निपातिक भाव ऐसा है-(खइयं सम्मत्तं ख मोवसमियाइं इंदियाई पारिणामिए जीवे) क्षायिक सम्यक्त्व क्षायिक भाव है, इन्द्रियां क्षायो. पशमिक भाव हैं तथा जीव यह पारिणामिक भाव है। (एस णं से णामे खड्यखओवसमियपारिणामियनिष्फण्णे) इस प्रकार यह क्षायिक क्षायोपशमिक और पारिणामिक इन तीन भावों के संयोग से निष्पत्र हुआ क्षायिकक्षायोपशमिक पारिणामिक नामका सान्निपातिक भाव है
भावार्थ-सूत्रकार ने इस सूत्र द्वारा तीन भावों के संयोग से जो १० सान्निपातिक रूप भंग होते हैं उनका प्रदर्शन किया है। इनमें औदयिक और औपशमिक इन दो भावों को परिपाटी से निक्षिप्त कर के अवशिष्ट क्षायिक क्षायोपशमिक और पारिणामिक इन तीनों भावों में से एक एक भाव का उनके साथ संयोग किया है। इस प्रकार करने से तीन भंग निष्पन्न होते हैं, इनमें औदायिकौपशमिक क्षायिक सान्निपा. तिक भाव इस प्रकार से घटित करना चाहिये कि यह मनुष्य उपशांत क्रोधादि कषायवाला होकर क्षायिक सम्यक् दृष्टि है। मनुष्य से यहां
उत्तर-(खइय खओवसमियपारिणामियनिष्फण्णे) क्षायि, क्षायापनि અને પરિણામિક, આ ત્રણ ભાવના સાગથી બનતે દસમે સાવિ પાતિક मा१ मा २ -(वइयं सम्मत्तं, खोवसमियाइं इंदियाई, पारिणामिए जीवे) क्षायि: सभ्यत्व क्षायि४ मा ३५ , धन्द्रिय क्षाया५मि४ मा ३५ छ भने ७५ परिणामि मा ३५ छ. (एसण से णामे खय खओवन. मिययारिणामियनिष्फण्णे) मा प्रा२नु क्षायि, क्षयोपशभि भने पारिवामि આ ત્રણ ભાના સાગથી બનતા દસમાં સન્નિપાતિક ભાવનું સ્વરૂપ છે.
ભાવાર્થ-ત્રણ ભાવના સાગથી જે દસ સાવિ પાતિક ભાવ રૂપ ૧૦ ભંગ બને છે, તેમનું સૂત્રકારે આ સૂત્રમાં નિરૂપણ કર્યું છે દયિક અને
પશમિક ભાવની સાથે અનુક્રમે ક્ષાયિક, ક્ષાપશમિક અને પરિણામિક ભાને સંગ કરવાથી પહેલા ત્રણ ભંગ બન્યા છે.
(१) "मोहविठोपभि सानियाति: आप " ३५ पडसा मनु' ઉદાહરણ આ પ્રમાણે છે-“આ મનુષ્ય ઉપશાન્ત ક્રોધાદિ કષાયવાળે છે અને સાયિક સમ્યક્દષ્ટિ છે. ” મનુષ્ય પદ અહી મનુષ્યગતિનું વાચક છે. મનુષ્ય ગતિ ઔદયિક ભાવ રૂપ હોય છે, કારણ કે મનુષ્યગતિ નામકર્મના ઉદયથી
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