Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगद्वारसूत्रे अथ सप्तनाम मरूपयतिमूलम्-से कि तं सत्त नामे ? सत्तनामे-सत्त सरा पण्णत्ता, ते जहा-सजे रिसहे गंधारे, मज्झिमे पंचमे सरे। धेवए चेव निस्साए सरा सत्त वियाहिया॥१॥सू०१६२॥
छाया-अथ किं तत् सप्त नाम ? सप्त नाम-सप्त स्वराः प्रज्ञप्ताः, तद्यथाषड्जः ऋषभः गान्धारः मध्यमः पञ्चमः स्वरः। धैवतश्चैव निषादः, स्वराः सप्त व्याख्याता॥१॥०१६२॥
टीका-'से किं तं सत्तनामे' इत्यादि
अथ किं तत् सप्तनाम ? इति शिष्यप्रश्नः। उत्तरयति-सप्तनाम-सप्तविधं नाम सप्तनाम, तच्च-सप्तसप्त संख्यकाः स्वरा:-ध्वनिविशेषाः प्रज्ञप्ताः । तानेव स्पष्टयति-तद्यथा-पड्ज ऋषभ इत्यादिना। तत्र-षड्जः-नासिकाकंठोरस्तालुजिह्वा दन्तेति षट्स्थानसं नातस्यात् अयं स्वरः षड्ज इत्युच्यते । उक्तंच--
अब सूत्रकार सप्त नाम की प्ररूपणा करते हैं"से कि तं सत्तनामे ?" इत्यादि । शब्दार्थ-(से कि तं सत्तनामे ?) हे भदन्त ! सतनाम क्या है ?
उत्तर-(सत्सनाम) सप्त प्रकार रूप-जो सप्तनाम है वह (सत्तसरा पण्णत्ता) सातस्वर स्वरूपप्रज्ञप्त हुआ है । अर्थात् सातस्वर ही सप्तनाम हैं । (तं जहा ) वे सात स्वर इस प्रकार से हैं-( सज्जे रिसहे गंधारे, मज्झिमे, पंचमे सरे । घेवए-चेव निस्साए सरा सत्त वियाहिया) षड्ज ऋषभ, गान्धार, मध्यम, पंचम, धैवत, और निषाद । नासिका, कंठ, उरस्थल, तालु, जिह्वा और दन्त इन छह स्थानों से उत्पन्न होने के कारण प्रथम स्वर 'षड्ज' कहलाता है। उक्तंच करके "नासां कण्ठ"
હવે સૂત્રકાર સતનામની પ્રરૂપણ કરે છે.
"से किं तं सत्तनामे " त्याहि- शाय-से किं तं सत्तनामे ?) महत ! सतनाम शु छ ? मता. qdi छे ते (सत्त सरा पण्णत्ता) सात २१२ २१३५ प्रशस येत छे. मेटसे
सात २१२ १ सानाम। छे. (तंजहा) ते सात १२ मा प्रभाव छ-(सज्जे रिसहे, गंधारे, मज्झिमे, पंचमे, सरे । धेवए चेव निस्साए सरा सत्त वियाहिया) पड़ सषम, साधार, मध्यम, यम धैवत मन निषानासित, , २स्थान, તાલુ,જિહૂવા અને દંત આ છ સ્થાનેથી ઉત્પન થવાના કારણથી પ્રથમ સ્વર
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