Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 836
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir D अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १६८ अष्टनामनिरूपणम् રં? देव ताना भवन्ति । इत्थं षड्जादिभिः सप्तभि नामभिः सर्वस्यापि स्वरमण्डलस्य ग्रहणादिदं सप्तनामेत्युच्यते । इदमेवोपसंहरन्नाह-'तदेतत् सप्तनामे वि।सु. १६७॥ अथाष्टनाम निरूपयितुमाह मूलम्-से किं तं अटुनामे ? अटुनामे अट्टविहा वयणविभत्ती पण्णत्ता, तं जहा-निद्देसे पढमा होइ, बिइया उवएसणे। तइया करणम्मि कया, चउत्थी संपयावणे॥१॥ पंचमी य अवायाणे, छट्री सस्सामिवायणे। सत्तमी सपिणहाणत्थे, अट्ठमाऽऽमंतणी भव॥२॥ तत्थ पढमा विभत्ती, निदेसे सो इमो अहं वत्ति । बिइया पुण उवएसे भण कुणसु इमं व तंवत्ति ॥३॥ तइया करणंमि कया, भणियं च कयं च तेण व मए वा। हंदि णमो साहाए, हवइ चउत्थी पयामि॥४॥ अवणय गिण्ह य एत्तो, इउत्ति वा पंचमी अवायाणे। छटी तस्स इमस्त व गयस्स वा सामिसंबंधे॥५॥ हवइ पुण सत्तमी तं, इमंमि आहारकालभावे य । आमंतणे भवे अट्ठमी उ जहा हे जुवाणत्ति॥६॥ से तं अट्ठणामे सू०१६॥ छाया-अथ किं तत् अष्टनाम ? अष्टनाम-अष्टविधा वचनविभक्तयः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-निर्देशे प्रथमा भवति, द्वितीया उपदेशने । तृतीया करणे कृता, चतुर्थी नामों से समस्त भी स्वरमंडल का ग्रहण हो जाता है। इसलिये यह सतनाम ऐसा कहा जाता है। (सेत्तं सत्तनामे) इस प्रकार से यह सतनाम है । ॥सू० १६७ ॥ अब सूत्रकार अष्ट नाम का निरूपण करते हैं "से कि तं अट्ठनामे" इत्यादि । નામેથી આખા સ્વરમંડળનું ગ્રહણ સમજવું જોઈએ એથી “સતનામ આમ उपाय छे. (सेत सत्तनामे) मा प्रभार मा सानाभा छे. ॥सू०१६७॥ હવે સૂત્રકાર અષ્ટ નામનું નિરૂપણ કરે છે– " से किं तं अटुनामे" त्याल For Private and Personal Use Only

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