Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगद्वारसूत्रे
भण, तत्-परोक्ष कार्य वा कुरु इति । तृतीया विभक्तिः करणे - कर्तरिकरणे च भवति । यथा - भणितं च कृतं च तेन वा मया वेति कर्त्तरीदमुदाहरणम् । करणे तु 'रथेन याति' इत्यादिकं स्वबुद्ध्या विभावनीयम् । संप्रदाने चतुर्थी विभक्ति भवति, यथा - मुनये दानं ददाति । नमः शब्दयोगेऽपि चतुर्थी त्रिभक्ति र्भवति, यथा'हन्दि ! नमो जिनेश्वराय' इति । 'इन्दि' इति कोमलामन्त्रणे । अपादाने पंचमी भवति, यथा- 'उपनय गृहाण एतस्मादितो वे 'ति । स्वामिसम्बन्धे = स्वस्वामि भावसंबन्धे वाच्ये षष्ठी भवति, तथा - 'गतस्य तस्य, गतस्य अस्य वा इदमस्ति '
परोक्ष कार्य को करो । ( तइया करणंमि- कया) तृतीया विभक्ति करण कर्ता और करण में होती हैं जैसे - ( भणियं च कथं च तेण मएवा) उसने और मैंने कहा अथवा उसने और मैंने किया । यह उदाहरणकर्त्ता में हैं। करण में उदाहरण "वह रथ से जाता है" आदि हैं। ऐसे उदाहरण अपनी बुद्धी से और भी कल्पित करलेना चाहिये। (चउथी संपघाणंमि हवह) चतुर्थी विभक्ति संप्रदान में होती हैजैसे (हंदि णमो सहाए) हन्दि | जिनेश्वर के लिये नमस्कार हो, अग्नि के लिए स्वाहा हो (यहां पर 'हन्दि ' यह शब्द कोमलामंत्रण में आया है। इसी प्रकार से 'दा' धातु के योग में चतुर्थी होती है - जैसे वह मुनि के लिये दान देता है । (अवायाणे पंचमी) अपादान में पंचमी होती हैंजैसे (अवणय गिव्ह य एतो इ उत्तिवा) इससे दूर करो अथवा इससे खेलो (सामि संबंधे) जहां स्व-स्वामी संबन्ध वाक्य होता है यहां पर 'पछी विभक्ति होती है, जैसे (गयस्स तस्स गयस्स इमस्स व ) गये
हुए કરા જે પરાક્ષમાં તમે સાંભળ્યું છે તેને કહે! અથવા તે પરાક્ષકામને કરા. ( तइया करणंमि कया) त्रीविभङित १२ उत्ताने ४२मां होय छे प्रेम (भणिय' च कथं तेण मएवा) तेथे अने में उद्धुं अथवा तेथे अने में उयु' मा उठाહેરણુ કોંમાં છે કરણમાં ઉદાહરણ આ પ્રમાણે છે-તે રથથી જાય છે વગેરે છે એવા उढाढरथे। पोतानी शुद्धिथी उल्पित उरी सेवा ले ये (चउत्थि संपयामि हवइ) यतुर्थी विभक्ति सप्रदानभां होय छेम 3 (हंदि णमो सहाए) उन्हि ! જિનેશ્વર માટે મારા નમસ્કાર અગ્નિ માટે સ્વધા અહીં હૅન્કિં' આ શબ્દ કામલામ ત્રણ માટે આવે છે આ પ્રમાણે ‘હૈં' ધાતુના ચેગમાં ચતુર્થાં होय हे प्रेम है ते भुनि भाटे हान माये छे. (अवायाणे पंचमी) अपाहानभां पंचमी होय प्रेम है (अवणय गिव्ह य एत्तो इ उत्तिवा) याने दूर ४२ अथवा मेनाथी सर्व सेो. (सामि सबंधे) ज्यां स्वस्वाभि संबंध वाय्य होय त्यां षष्ठी विलति थाय छे प्रेम (गयरस तस्स गयरस इमस्सव ) गयेक्ष
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