Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 855
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८४० अनुयोगद्वारसू तद्दर्शनोद्भवो रसोऽपि विस्मयकरो बोध्यः एतादृशो यो रसो भवति स हर्षविषा दोत्पत्तिलक्षणः आश्चर्यमये शुभे वस्तुनि दृष्टे हर्षोत्पत्तिः तथैवाशुभे वस्तुनि विषादोत्पत्तिः, एतदुभयचिह्नः अद्भुतो नाम रसो बोध्यः । उदाहरणमाह- अद्भुतं रसो यथा - इह = अस्मिन् जीवलोके= संसारे इतोऽन्यत् = अस्मात्परम् अद्भुततरम्ः आश्चर्यतरम् किमस्ति ?=न किंचिदप्यस्ति । कुतो न ? इत्याह-यत् = यस्मात् कारणात जिनवचने त्रिकालयुक्ताः = अतीतानागतवर्तमानरूपत्रिकालयुक्ता अपि अर्था:= जीवादयः सूक्ष्मव्यवहिततिरोहितातीन्द्रिया मूर्त्तादिस्वरूपा ज्ञायन्ते इति। ०१७२॥ भूयपुण्वो) अनुभव में भी आये हुए ऐसे (विम्हयकरो) किसी अदभूत पदार्थ के देखने पर जो आश्चर्य होता है, उस आश्चर्य का जनक वा पदार्थ विस्मय कर कहलाता है तथा उससे जो रस उत्पन्न होता हैं वह रस भी विस्मयकर कहा जाता है। इस अद्भूत रस का लक्षण हर्ष और विषाद की उत्पत्ति होना है। आश्चर्य जनक किसी शुभवस्तु के देखने पर हर्षोत्पति होती है, और अशुभवस्तु देखने पर विषादो त्पत्ति होती है । अतः यह अद्भूत रस इन दोनों चिह्न वाला होता है. ऐसा जानना चाहिये | अब सूत्रकार इस रस को जानने के लिये उदा हरण कहते हैं । वे कहते हैं कि (अब्भुओ रसो) ' यह अद्भूत रस इसप्रकार से है (जहा) जैसे- (अन्भुयतरमिह एत्तो अन्नं किं अस्थिजीव. लोगंमि ) इस - जीवलोक में इससे अधिक और दूसरा आश्चर्यक्या है ? (जं जिणवयणे तिकालजुत्ता अत्था मुणिज्जंति) जो जिन वचन में स्थित त्रिकाल - अतीत अनागत और वर्तमान कालवर्ती समस्त (अनुभूयपुत्रो ) अनुभवेस (विम्हयकरो ) अ पशु अद्दभुत पहार्थ ने लेने જે આશ્ચય થાય છે, તે આશ્ચર્યને ઉત્પન્ન કરનાર તે પદાર્થ વિસ્મયકારી કહેવાય છે. તેમજ તેના વડે જે રસ ઉત્પન્ન થાય છે, તે રસ પણ વિસ્મય. કર કહેવાય છે આ અદ્ભુત રસનું લક્ષણુ હષ અને વિષાદની ઉત્પત્તિ થવી તે છે આશ્ચાત્પાદક કેાઈ શુભ વસ્તુને જોવાથી હષ ઉત્પન્ન થાય છે. થાય છે. એથી અને અશુભ વસ્તુને જોવાથી વિષાદની ઉત્પત્તી આ અદ્ભુત રસ આ અન્તે ચિહ્નો યુક્ત હોય છે. હવે સૂત્રકાર આ રસને लायुत्रा भाटे उहाहर। प्रस्तुत रे . तेथे उ छे हैं (अन्भुओ रम्रो) या अहूलुत रस आ प्रमाणे छे - (जहा) प्रेम ( अब्भुयतरमिह पत्तो अन्नं किं अस्थि जीवलोगंमि) भा જીવલેાકમાં એના કરતાં ખીજી કઈ નવાઈ - भाडेतेवी वात छेडे (जं जिणत्रयणे तिकाल जुत्ता अत्था मुणिज्जंति) भे જિન વચનમાં સ્થિત ત્રિકાલ–અતીત-અનાગત અને વર્તમાનકાલીન સર્વ For Private and Personal Use Only

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