Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 838
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १६८ अष्टनामनिरूपणम् भणितं च कृतं च तेन वा मया वा। हन्दि नमः स्वाहायै भवति चतुर्थीपदाने॥४॥ अपनय गृहाण च अस्मात् इतः इति वा पञ्चमी अपादाने । षष्ठी तस्य अस्य व गतस्य वा स्वामिसम्बन्धे॥५॥ भवति पुनः सप्तमी सा अस्मिन् आधारकालभावे च । आमन्त्रणे भवेत् अष्टमी तु यथा हे युवन् इति॥६॥ तदेतद् अष्टनामा|म.१६८॥ टीका-'से किं तं' इत्यादि-- अथ किं तत् अष्टनाम ? इति शिष्य प्रश्नः। उत्तरयति-अष्टनाम-अष्टविध नाम-अष्टनाम, तथाहि-अष्टविधा अष्टमकारा वचनविभक्तिः-उच्यन्ते इति - वचनानि-पदानि, विभज्यतेप्रकटी क्रियते कर्तृकर्मादिरूपोऽर्थोऽनयेति विभक्तिः, वचनानां विभक्तिः-वचनविभक्तिः प्रज्ञप्ता कथिता तीर्थकरगणधरैः। वचनविभतस्या कया) करण में "टा, भ्याम् भिस्" यह तृतीया विभक्ति होती है। (संपयावणे चउरथी) संपदान में चतुर्थी के, भ्याम् भ्यम्-यह विभक्ति होती है। (अवायाणे पंचमीच) अपादान में उसि भ्याम्, भ्यस, "यह पंचमी विभक्ति होती है। (सस्सामिवायणे छट्ठी) स्व स्वामी संबंध प्रतिपादन करने में " उम् ओस् आम्" यह षष्ठी विभक्ति होती है। (सण्णिहाणत्थे सत्समी) सन्निधान अर्थ में " डि ओम् सुप्" यह सप्तमी विभक्ति होती है। (आमंतणी अट्ठमा भवे) सन्मुख करने के अर्थ में संबोधनरूप आठवीं विभक्ति होती है। तात्पर्य कहने का यह है कि-'यहां पर सूत्रकार ने अष्ट नाम क्या है ? यह कहा है। नाम के विचार का प्रस्ताव होने से प्रथमादि विभक्त्यन्त नाम का ही ग्रहण किया गया है। यह नाम विभक्ति के भेद से आठ - सेना १५२ ५५ द्वितीय विमत डाय छे. (करणम्मि तइया कया) ४२९मां "टा, भ्याम्, मिस्" . तृतीय nिlsd डाय छ (संपयावणे चउत्थी) हानमा यतुर्थी “के, भ्याम्, भ्यस् " मा विमति डाय छे. (अवायाणे पंचमी च) पाहानमा " कसि, भ्याम् भ्यसू," An पांयमी nिlsd डेय (सस्वामिवायणे छट्ठी) २१ स्वामी समय प्रतिपान ४२वामी उस ओस आम्' मा पठी विन डाय छे. (मण्णिहाणत्थे मत्तमी) सन्निधान सभा 'किओस. सर' मा सभी nिlsd डाय छ (आमंतणी अमामवे) અભિમુખ કરવાના અર્થમાં સંબોધન રૂપ આઠમી વિભકિત હોય છે મતલબ આ છે કે “અહી સૂત્રકારે અણનામ એટલે શું? આ કહ્યું છે નામવિચાર વિષે જ પ્રસ્તાવ હવા બદલ પ્રથમા વગેરે વિભક્ત્યંત નામનું જ ગ્રહણ કરવામાં આવ્યું છે આ નામ વિભકિત ભેદથી આઠ પ્રકારના હોય છે. પ્રથમ For Private and Personal Use Only

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