Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १६४ सप्तस्वरलक्षणनिरूपणम् ७९९ वच्चं धणाणि य । वत्थ गंधमलंकारं, इथिओ सयणाणि य॥२॥ गंधारे गीयजुत्तिण्णा, वज्जवित्ती कलाहिया। हवंति कइणो पण्णा, जे अण्णे सत्थपारगा॥३॥ मज्झिमस्सरसंपन्ना, हवंति सुहजीविणो। खायई पियई देई, मज्झिमस्सरमस्सिओ॥४॥ पंचमस्सरसंपन्ना हवंति पुढवीवई । सूरा संगहकत्तारो अणेगगणनायगा॥५॥धेवयस्सरसंपन्ना हवंति कलहप्पिया। साउणिया वग्गुरिया, सोयरिया मच्छबंधा य ॥६॥ चंडाला मुट्रिया सेया, जे अन्ने पावकम्मिणो। गोघातगा य जे चारा, णिसायं सरमस्सिया ॥७॥सू०१६४॥
छाया-एतेषां खलु सप्तानां स्वराणां सप्त स्वरलक्षणानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथाषड्जेन लभते वृति, कृतं च न विनश्यति । गावः पुत्राश्च मित्राणि च, नारीणां
अब सूत्रकार इन सात स्वरों के लक्षणों को कहते हैं"एएसिं णं सत्तण्हं" इत्यादि।
शब्दार्थ-(एएसिं सत्तण्हं सराणं) इन सात स्वरों के (सरलक्खणा) स्वर लक्षण-तत् तत्-फल की प्राप्ति के अनुसार स्वर तत्व-'सत्त) सात (पण्णत्ता) कहे गये हैं। (तंजहा) वे इस प्रकार से हैं-(सज्जेण वित्तिलहई) षहज स्वर से मनुष्य-आजीविका प्राप्त करता है। (कयं च ण विणस्सइ) तथा षडूज स्वरवाले व्यक्ति का कृतकर्म नष्ट नहीं होता है। (गावो पुस्ता य मित्सा य नारीण होइ वल्लहो) इस को गायें पुत्र और
હવે સૂત્રકાર એ સાત સ્વરેના લક્ષણ કરે છે– "एएसिणं सत्तण्हं" त्याह
शहाथ-(एएसि णं सत्तण्हं सराणं) मे सात २१राना (सरलक्खणा) १२क्षय-
ते जनी प्रालिनी अपेक्षाये २१२तत्य (सत्त) सात (पण्णत्ता) 8. पाम माव्या छ (तंजहा) तमे मा प्रभार छ (सज्जेण वित्तं लहई) ५४०१ ११२थी भास भावि प्रात ४२ छ (कयंच ण विणस्सइ) तेभ०४ ५३०४ २१२वाणी व्यति. सोना इतनाश पामता नथी अर्थात् सिद्धरे छे. (गावो पुत्ता य मित्ता य नारीण होइ वल्लहो) माने या पुत्र भने भित्र हाय छे. श्रीमान से मार
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