Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 831
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगद्वारसूत्रे अत्रेदं बोध्यम्-एकोऽपि गीतस्वरोऽक्षरपदादिभिः सप्तभिः स्थानैः सह समत्वं प्रतिपद्यमानः सप्तधात्वं भजते, अतोऽक्षरसमादयः सप्तस्वरा भवन्तीति । अत्र तु सूत्रोपान्ते ' तंतिसमं तालसमं' इति गाथया सप्तस्वरा उच्यन्ते इति बोध्यम् । तथा गीते यः सूत्रबन्धः सोऽष्टगुण एव कर्तव्य इति तानाह-'निदोसं' इत्यादि। निर्दोषम् 'अलियमुवघायजणयं' इत्यादि द्वात्रिंशदोषरहितम् १, सारवत्-विशिष्टा र्थयुक्तम् २ हेतुयुक्तम्-गोतानामर्थबोधोऽनायासेन श्रोतॄणां भवत्विति हेतुमुपलक्ष्य यद् रचितं गीतं तत् , प्रासादगुणयुक्तमित्यर्थः३, अलङ्कृतम्-उपमाचलङ्कारयुक्तम्४, के ऊपर ही जो अंगुली के संचार के साथ २ गाना गाया जाता है, वह संचारसम है। इस प्रकार ये सात स्वर होते हैं । यहां पर ऐसा जानना चाहिये कि-एक ही गीत स्वर अक्षर पद आदि सात स्थानों के साथ उनकी समानता को पाता हुआ सात प्रकार का हो जाता है । इसलिये अक्षरसम आदि सात स्वर होते हैं । यहां तो सूत्र के उपान्त में "तं. तिसमं, तालसमं" इस गाथा द्वारा सातस्थर कहे गये हैं। तथा गीत में जो सूत्रबंध-किया जावे वह आठ गुणवाला ही किया जाना चाहिये। आठ गुण इस प्रकार से हैं-(निहोसं सारमंतंच हेउजुत्तमलंकियं उव. णीयं सोश्यारंच मियं महुरमेव य) निर्दोष-अलीक, उपघात जनक इत्यादि ३२ दोषों से रहित होना इसका नाम 'निर्दोष' है। सारवत्विशिष्ट अर्थ से युक्त होना इसका नाम 'सारवान्' है। श्रोताजनों को अनायास ही गीत के अर्थ का बोध हो जावे, इस हेतु को ध्यान में रख कर जो गीत रचा गया हो वह हेतुयुक्त' है । तात्पर्य यह है कि સિત સમ છે વશ તંત્રી વગેરેની ઉપર જ જે આંગળીના સંચારની સાથે ' સાથે ગવાય છે તે “સંચારસમ છે. આ પ્રમાણે આ બધા સાત થાય છે. અહીં એમ સમજવું જોઈએ કે દરેક ગીત ૨વર અક્ષર પદ વગેરે સાત સ્થાનની સાથે સાથે તેમની સમાનતા મેળવતું સાત પ્રકારનું થઈ જાય છે. અહીં सूत्रता पन्तम " तंतिसम तालसमं" या गाथा १ सात १२ अपामा આવ્યા છે, તેમજ ગીતમાં જે સૂત્રબંધ કરવામાં આવે તે આઠ ગુણ યુક્ત डावन मा शुर। मा प्रभारी छ-(निहोसं सारमंतं च हेड जुत्तमलं. कियं उवणीय सोवयारच मिय' महुरमेवयं) निषि-मसी, Bातन વગેરે બત્રીશ દોષ રહિત થવું તે નિર્દોષ છે. સારવત-વિશિષ્ટ અર્થથી યુક્ત હેય તે સારવત છે. સાંભળનારાઓને અનાયાસ જ ગીતના અર્થનું જ્ઞાન થાય એ વાતને ધ્યાનમાં રાખીને જે ગીતની રચના કરવામાં આવે છે તે હેતુયુક્ત” કહેવાય છે. મતલબ એ છે કે ગીત પ્રાસાદ ગુણ યુક્ત હોવું જોઈએ For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864