Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 829
________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org .. अनुयोगद्वारसूत्रे रक्षेपः-मुरजकास्यादीनां गीतोपकारकाणां ध्वनिः, नर्तकीपदप्रक्षेपलक्षणो वा, समौ तालमत्युक्षेपौ यत्र तत् । तथा-सप्तस्वरसीभरम्-सप्त स्वगः सीभरन्ति अक्षरादिभिः सह समा यत्र भवन्ति तत् । एवं विषं यद् गीतं गीयते तदेव सुगीतं भवति । इत्थं च उरकण्ठ शिरःप्रशस्तत्वादयोऽपि गीतगुणा बोध्या: 'सप्तस्वरसीभरम्' इत्युक्त, तत्र ये सप्त स्वरास्ते क्वचित् एवमुक्ताः "अक्खरसमं पदसमं तालसमं च लयसमें गहममं । नीससिओससियसमं संचारसमं सरा सत्त ।। छाया-अक्षरसमं पदसमं तालसमं च लयसमें ग्रहसमम् । निःश्वसितोच्छ्वसितसमं सञ्चारसमं स्वराः सप्त । इति।। अयमर्थः-अक्षरसमम्-यत्र दोघेऽक्षरे दीर्थों गीतस्वरः क्रियते, ह्रस्वे हस्वः, प्लुते प्लुता, सानुनासिके सानुनासिका, तदक्षरसमम् ॥१॥ पदसमम्-यत् पदं गीतमें पदों की रचना विशिष्ट होती है, वह ' पदयद्ध' गान है । (समताल. पडु खेव) जिस गान में ताल-हस्तताल से उत्पन्न हुआ शद और प्रत्यक्ष-मृदंग कांस्य आदि का जो कि गीत के उपकारक होते है उनकी ध्वनि अथवा नतेकीजन का पादप्रक्षेप ये दोनों जिसमें एक साथ होते है वह समताल प्रत्युत्क्षेप गान है। यह गान का गुण है। (सत्तस्सरसीभरंगीयं) जिस गान में सात स्वर अक्षरों के साथ समान होते हैं वह गान 'सप्तस्वरसीभर' कहलाता है। इस प्रकार का जो गाना गाया जाता है वही सुगीत (गीत) कहलाता है । सप्तस्वर सीभर में जो सात स्वर कहे गये हैं, वे कहीं२ पर इस प्रकार से कहे गये हैं-अक्षरसम१, पदसम२, तालसम३, लयसम४, ग्रहसम५, निाश्वसितोच्छवसित. सम६, और संचारसम ७, जिस गाने में दीर्घ अक्षर पर दीर्घस्वर, हस्व अक्षर पर हस्व स्वर प्लुत अक्षर पर प्लुत स्वर और सानुनासिक मद्ध' गीत छ. (समताल पडुक खेवं) रे गीतwi da-तताथी 64-i થયેલ શખ અને પ્રત્યક્ષેપ-મૃદંગ કાંસ્ય વગેરેને કે જે ગીતના માટે ઉપકારક હોય છે તેમને દવનિ અથવા નર્તકીઓનું પાદપ્રક્ષેપણ એ બને જેમાં એકી સાથે હોય છે તે સમતાલ પ્રત્યક્ષેપ ગીત છે. આ ગીતને ગુણ છે. (सत्तस्सरसीभर गीय) २ गीतमा सात-१२ अक्षशनी साये समान जय छ તે ગીત “સમસ્વર સીભર કહેવાય છે. આ પ્રમાણે જે ગીત ગવાય છે તે સુગીત (ગીત) કહેવાય છે. “સમસ્વર સીભરમાં જે સાત સ્વરે કહેલા છે તેઓ કઈક સ્થાને આ પ્રમાણે પણ કહેવામાં આવ્યા છે–૧ અક્ષરસમ, ૨ पढ़सम, 3 सम, ४ सयसम, ५ असम, ६ निवासतरासतसम, અને ૭ સંચારસમ, જે ગીતમાં દીર્ઘ અક્ષર પર દીર્ઘ સ્વર, હરવઅક્ષર પર હસ્વવર, ડુત અક્ષર પર કુતસ્વર અને સાનુનાસિક પર સાનુનાસિક સ્વર For Private and Personal Use Only

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