Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 796
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १६० चतुष्कसंयोगनिरूपणम् ७७९ मिको जीवः । एतत् खलु तन्नाम औपशमिकक्षायिकक्षायोपशमिकपारिणामिकनिष्पन्नम् ५ ॥५० १६०॥ .. टीका-'तत्थ णं जे ते पंच' इत्यादि पञ्चसु भावेषु पञ्चमं भावं परिहाय अविशिष्ट भावनिष्पन्नत्वेन प्रथमो भगो बोध्यः । चतुर्थ परिहाय शेषनिष्पन्नत्वेन द्वितीयो भङ्गः । तृतीयं परिहाय शेषऔपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक और पारिणामिक इन चार भावों के संयोग से निष्पन्न हुआ भंग ऐसा है-(उपसंता कसोया, खइयं सम्म. सं, खओवसमियाइं इंदियाई पारिणामिए जीवे) उपशांत हुई कषायें औपशमिकभाव है, क्षायिक सम्यक्त्व क्षायिक भाव रूप है, इन्द्रियां क्षायोपशमिक भावरूप है, और जीवत्व यह पारिणामिक भाव रूप है (एस णं से नामे उवसमिय खहयख ओवसमियपारिणामियनिष्फण्णे) इस प्रकार यह औपशमिकक्षायिक क्षायोपशमिक और पारिणामिक इन चार भावों के संयोग से निष्पन्न हुभा इस नामका पांचवां भंग है। भावार्थ-इस सूत्रद्वारा सूत्रकारने चार २ भावों के संयोग से ५ भंग निष्पन्न हुए हैं वे कहे हैं। इनमें पांचवां भाव जो पारिणामिक भाव है उसे छोड़कर बाकी के चार भावों के संयोग से प्रथम भंग निष्पन्न हुआ है। चौथा भाव जो क्षायोपशमिक भाव है उसे छोड़कर शेष चारभावों के संयोग से द्वितीय भंग निष्प___Gत्तर-( उपसमियखइयख भोवस मियपारिणामियनिष्फण्णे ) मोपसभिड ક્ષાયિક, શાપથમિક અને પરિણામિક, આ ચાર ભાવના સંગથી બનતે पाय Min मा २नेछ-उवसंता कसाया, खयं सम्मत्तं, खओवसमियाई इंदियाई' पारिणामिए जीवे) २सान्निति समi Gurd पाये। પશમિક ભાવ રૂપ છે, ક્ષાયિક સમ્યક્ત્વ ક્ષાયિક ભાવ રૂપ છે, ઈન્દ્રિ क्षायो५मि मा ३५ छे भने ०११ पारिमि मा ३५ छ. (एसणं से नामे उपसमियखइयख भोपसमिय, पारिणामिय नि फण्णे) या प्रश्ना પશમિક, ક્ષાયિક, ક્ષાપશમિક અને પરિણામિક, આ ચાર ભાવના સંગથી બનતે “પશમિક ક્ષાયિક ક્ષાયોપથમિક પરિણામિક ” નામને પાંચમે ભંગ સમજ. ભાવાર્થ–ચાર ચાર ભાવના સંગથી બનતા પાંચ અંગોનું સૂત્રકારે આ સૂત્ર દ્વારા નિરૂપણ કર્યું છે. પહેલે ભંગ આ પ્રકારે બન્યો છે-પાંચ ભાવે માંના છેલ્લા પરિણામિક ભાવ સિવાયના સંગથી પહેલે ભંગ બને છે. For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864