Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १६० चतुष्कसंयोगनिरूपणम् मिकक्षायोपशमिकपारिणामिकनिष्पन्नम्-औदयिकमितिमानुष्यम् , उपशान्तार कषायाः, क्षायोपशमिकानि इन्द्रियाणि, पारिणामिको. जीवः । एतत् खलु तन्नाम औदयिकोपमिक क्षायोपशमिकपारिणामिकनिष्पन्नम्३ । कतरत् तन्नाम औदयिक क्षायिकक्षायोपशमिकपारिणामिकनिष्पन्नम्? औदयिकक्षायिकक्षायोपशमिकपशमिक, और पारिणामिक इन चार भावों के संयोग से निष्पन्न हुआ भंग कैसा है ?
उत्तर-( उदय उवममियखओवसमियपारिणामियनिष्फण्णे ) औदपिक, औपशमिक, क्षायोपशमिक एवं पारिणामिक इन चार भावों के संयोग से निष्पन्न तीसरा भंग ऐसा है-(उदएत्ति मणुस्से, उपसंता कसाया, खओवसमियाइं इंदियाई, पारिणामिए जीवे) मनुष्य गति यह औदायिक भावरूप है, उपशांत हुई कषायें औपशमिक भाव हैं, इन्द्रियां क्षायोपशमिक भाव रूप है और जीवत्व यह पारिणामिक भाव रूप है । (एस " से णामे उदय उवसमियखओवस मिय पारिजामियनिष्फणे) इस प्रकार यह औदयिक, औपशमिक और पारिणामिक इन चारभावों के संयोग से निष्पन्न हुआ इस नामका तृतीय भंग है। (कयरे से णामे उदइय खइयखओवसमियपारिणामियनिष्फण्णे ?) हे भदन्त ! औदपिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक और पारिणामिक इन चोर भावों के संयोग से निष्पन्न भंग कैसा है ?
प्रश्न-(कयरे से णामे उदइयउवसमियखओवनमियपारिणामियनिष्फन्ने) 3 ભગવન! દયિક, ઔપશમિક, ક્ષાપશમિક અને પરિણામિક, આ ચાર ભાવના સંવેગથી બનતા સાન્નિપાતિક ભાવ રૂપ ત્રીજા ભંગનું સ્વરૂપ કેવું છે?
उत्तर-(उदइयउवसमियखओवसमियपारिणामियनिप्पण्णे) मोहयि, मौ५. શમિક ક્ષાએ પશમિક અને પરિણામિક, આ ચાર ભાના સોગથી मनता की सानितिs भाप मा २ छ-(उदइएत्ति मणुस्से, उवसंता कसाया, खओवसमियाइं इंदियाई, पारिणामिए जीवे) alon Rना सान्निपाતિક ભાવમાં મનુષ્યગતિ ઔદયિક ભાવ રૂપ છે, ઉપશાન્ત કષાયે પશમિક ભાવ રૂપ છે, ઈન્દ્રિયો લાપશમિક ભાવ રૂપ છે અને છેવત્વ પરિણામિક मा ३५ छ. (एसणं से णामे उसइयवसमियन ओवसमियपारिणामियनिष्फण्णे) આ પ્રકારને આ “દયિકોપથમિક ક્ષાપશમિક પરિણામિક” નામને ત્રીજે ભંગ છે.
प्रश्न-(कयरे से णामे उदइयखइयख ओवस मियपारिणामियनिष्फण्णे १) હે ભગવન! ઔદયિક, ક્ષાયિક ક્ષાપશમિક અને પરિણામિક, આ ચાર ભાના સગથી બનતા ચેથા પ્રકારના સાન્નિપાતિક ભાવનું સ્વરૂપ કેવું છે.
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