Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १५४ चतुष्कसंयोगनिरूपणम् तन्नाम औदयिकौपशमिकक्षायिकक्षायोपशमिकनिष्पन्नम् ? औदयिकौपशमिकक्षायिकक्षायोपशमिकनिष्पन्नम्-औदायिकमिति मानुष्यम्, उपशान्ताः कषायाः क्षायिकं सम्यक्त्वं, क्षायोपशमिकानि इन्द्रियाणि । एतत् खलु तन्नाम औदयिौपशमिकक्षायिकक्षायोपशमिकनिष्पन्नम् ? । कतरत् तन्नाम औदयिकोपशमिक क्षायिकसमिय-पारिणामियनिफण्णे १) औपशमिक क्षायिक, क्षायोपशमिक
और पारिणामिक इन चार भावो के संयोग से निष्पन्न ५वां भंग है। (कयरे से नामे उदइयउवसमियखइयखओवसमियनिष्फण्णे) हे भदन्त ! औदयिक, औपशमिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक इन चार भंगो के संयोग से जो सानिपातिक भाव रूप भंग निष्पन्न होता है वह कैसा है ? ___ उत्तर-(उदय उपसमियखायखोवसमिनिफण्णे ) औदयिक
औपमिक-क्षायिक और क्षायोपशमिक इन चार भावों के संयोग से जो सान्निपातिक भाव निष्पन्न होता है वह ऐसा है-(उदइएत्ति मणुस्से उवसंता कसाया खइयं सम्मत्तं खोवसमियाई इंदियाइं) यहां मनुष्य गति यह औदयिक भावरूप है, उपशांत कषाय ये औपशमिक भावरूप है, क्षाधिक सम्यक्त्व यह क्षायिक भावरूप है, इन्द्रियां क्षायोपशमिक भाव रूप हैं । (एस ण से णामे उदइयउवसमिय, खइयखओक्समिय. निप्फण्णे) इस प्रकार यह औदयिकौपशमिक क्षायिक क्षायोपशमिक नाम का इन भावों से निष्पन्न सान्निपातिक भाव का प्रथम भंग है। निष्फण्णे) भोपामिर, क्षायि, क्षायोपशभिः मने पारिवामिड, 0 यार ભાના સંગથી બનતે સાત્રિપાતિક ભાવ,
प्रश्न-(कयरे से णामे उदइयउवचमियखइयस्खओवसमियनिष्फण्णे?) 3 ભગવદ્ ! ઔદયિક, ઔપથમિક, ક્ષાયિક અને ક્ષાયોપથમિક, આ ચાર ભાવના સંયોગથી બનતા સાન્નિપાતિક ભાવ રૂપ પહેલા ભંગનું સ્વરૂપ કેવું છે?
उत्तर-(उदइय उवसमियखइयख ओवसमियनिष्फण्णे) मौयि४, मोपશમિક, ક્ષાયિક અને ક્ષાયોપથમિક, આ ચાર ભાવેના સંયોગથી જે સાત્તિपातिकमा ३५ सन छ मारने -(उदइएत्ति मणुस्से, उवसंता कसाया, खइयं सम्मत्तं, खओवसमियाइं इंदियाई) मा सान्निपाति भावमा मनुष्य ગતિ ઔદયિક ભાવ રૂ૫ છે, ઉપશાન્ત કષાય ઔપશમિક ભાવરૂપ છે, ક્ષાયિક સમ્યક્ત્વ ક્ષાયિક ભાવ રૂપ છે અને ઇન્દ્રિયો શાયોપથમિક ભાવરૂપ છે. (एस णं से णामे उदइय उवचमियखइयत्रओवसमियनिष्फण्णे) मारना તે ઓયિક, ઔપશમિક, ક્ષાયિક અને ક્ષાપશમિક, આ ચાર ભાવના સાગથી બનતા સાન્નિપાતિક ભાવ છે.
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