Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगद्वारसूत्र भवति । इत्थं चात्र तृतीयचतुर्थ भङ्गौ एव वस्तुगतत्वेन संभवतः । इतरे भङ्गास्तु प्रदर्शनमात्रम् । तद्रूपेण तेषां वस्तुन्यसंभवादिति ॥मू० १६०॥
अथ पञ्चकसंयोगं निरूपयति
मूलम्-तत्थं गंजे से एके पंचगसंजोए से णं इमे-अस्थि नामे उदइय उपसमिय खइयखओवसमियपारिणामियनिष्फण्णे? कयरे से नामे उदइयउवसमियखइयखओवसमियपारिणामियनिष्फपणे?, उदइय उपसमियखइयखओवसमियपारिणामियनिप्फाणे-उदइएत्ति मणुस्से उबसंता कसाया खइयं सम्मत्तं खओवसमियाइं इंदियाइं पारिणामिए जीवे। एस णं से णामे जाव पारिणामियनिप्फण्णे। से तं सन्निवाइए । से तं छपणामे ॥सू०१६१॥
छाया-तत्र खलु यः स एकः पञ्चकसंयोगः स खलु अयम्-अस्ति नाम औदयिकोपशमिकक्षायिकक्षायोपशमिकपारिणामिकनिष्पन्नम् ?। कतरत् तन्नाम में पूर्व प्रतिपन्न को और प्रतिपद्यमान को भी होता है । इसप्रकार तृतीय और चतुर्थ ये दो भंग ही वास्तविक रूप में वस्तुगत संभवित होते हैं । इतर शेष-तीन भंग नहीं पाये जाते हैं ॥सू० १६०॥ ... अब सूत्रकार पांच भावों के संयोग से जो-भंग निष्पन्न होता है उसकी प्ररूपणा करते हैं-"तत्थ णं जे से एक्के" इत्यादि ।
शब्दार्थ-(तत्थ णं जे से एकके पंचक संयोगे से णं इमे) पांचोंभावों के संयोग से जो एक भंग उत्पन्न होता है वह इस प्रकार से हैસમ્યક્ત્વ હોય છે. આ પ્રકારે અહીં ત્રિીને અને ચોથે, આ બે ભંગ જ વાસ્તવિક રૂપે વસ્તુગત સંભવિત હોય છે બાકીના ત્રણ ભગે વાસ્તવિક રૂપે તે સંભવિત જ નથી છતાં પ્રરૂપણું કરવાના હેતુથી જ અહીં તે અંગેનું નિરૂપણ કરવામાં આવ્યું છે. સૂ૦૧૬ના - પાંચ ભાવના સાગથી જે સાત્રિપાતિક ભાવ નિષ્પન્ન થાય છે, તેની सूत्र॥२ ३ ४३५६५। ४२ छ-" तत्थ णं जे से एक्के" त्याहि
शहाथ-(तत्थणं जे से एकके पंचगसंजोगे से णं इमे) पाये सावाना सयोगयी २ मे मन छे ते मा प्रभा छ-(अस्थिणामे उदइयउवस.
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