Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगद्वारसूत्रे
मिकनिष्पन्नम् ३. अस्ति नाम औदयिकक्षायिकक्षायोपशमिकपारिणामिक निष्पन्नम् ४, अस्ति नाम औपशमिकक्षाधिकक्षायोपशमिकपारिणारिणामिक निष्पन्नम्५, कतरत्
अब सूत्रकार - चार भावों के संयोग से निष्पन्न सान्निपातिक भावों की प्ररूपणा करते हैं- तत्थ णं जे ते पंच " इत्यादि ।
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शब्दार्थ - (तस्थ णं जेते पंच चउक्कसंजोगा ते णं इमे) यहां जो चतुष्क संयोगी पांच भंग हैं वे इस प्रकार से हैं- (अस्थि णामे उदय, उवसमिप - खइय-खओवसमियनि फण्णे १) औदयिक, औपशमिक क्षायिक और क्षायोपशमिक इन चार भावों के संयोग से निष्पन्न पहिला भंग है । (अस्थि णामे उदय - उवसंमिय-खड्य- पारिणामियनिष्कण्णे २) औदयिक, औपशमिक, क्षायिक और पारिणामिक इन चार भावों के संयोग से निष्पन्न दूसरा भंग है । (अस्थिणा मे उदय उवसमिय, खओवसमय पारिणामिय निष्फण्णे ३) औदयिक, औपशमिक क्षायोपशमिक और पारिणामिक इन चारभावों के संयोग से निष्पन्न तीसरा भंग है । ( अस्थि णामे उदयखइयखओवसमिय पारिणामियनिष्फण्णे ४ ) औदयिक क्षायिक, क्षायोपशमिक और पारिणामिक इन चार भावों के संयोग से निष्पन्न चौथा भंग है (अस्थि णामे उवसमियखइयखभवચાર ભાવાના સચૈાગથી નિષ્પન્ન થતા સાન્નિપાતિક ભાવેનુ સૂત્રકાર da lzug it 3-“ aæroi à à da ” Seullâ—
शब्दार्थ - (तत्थणं जे ते पंच चउक्कसंजोगा ते णं इमे) यार भावाना सयोगथी અનતા ચતુષ્કસ ચેાગી. પાંચ ભ`ગ ભને છે, તે ચતુષ્કસચેાગી પાંચ ભ`ગા नीचे प्रमाणे छे- (अस्थिणामे उदइय उवस मिय-खइय- खओवस मियनिष्फण्णे) પહેà! ભગ-ઔયિક, ઔપશમિક, ક્ષાયિક અને ક્ષાયેાપશમિક, આ ચાર लाशना स'योगथी जनते सान्निपात लाव ( अस्थिणा मे उदय, उवस मिय, aga, akaifa, fac007) old -illus, milualus, las m પારિણામિક, આ ચાર ભાવેાના સયાગથી ખનતા સાન્નિપાતિક ભાષ
( अस्थिणा मे उदइय उवस मिय - खओवसमिय- पारिणामियनिष्कण्णे) त्रीले लौंग-गौहयिक, भोपशमि क्षायोपशमिङ भने पारिश्रामिक, मा यार ભાવાના સ ંચાગથી બનતા સાત્તિપાતિક ભાવ,
थोथे। लौंग- ( अस्थिणा मे उदइय - खइय - खओवसमिय- पारिणामियनिष्कण्णे) ઔયિક, ક્ષાયિક, ક્ષાયે પદ્યમિક અને પાણિામિક, મા ચાર ભાવાના સયે.ગથી નિષ્પન્ન થતા સાન્નિપાતિક ભાવ,
यांथमा लौंग - (अत्थिणामे उवस्वभिय-खाय खओवस मिय- पारिणामिय
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