Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १३७ पौषनिधिक कालानुपूर्षीनिरूपणम् ५९९ इत्यामानामन्योऽन्याभ्यासे ये अनन्ता भङ्गा भवन्ति, सेषु आद्यन्तरूपभङ्गकद्वयविवक्षामपहाय सर्वमङ्गगुणनामिषा बोध्या। अत्र कालविचारस्य प्रस्तुतत्वात समयादेश्वकालत्वेन प्रसिद्धत्वात् अनुषातो विनेयानां समयादिकालज्ञानं भवत्, इति प्रकारान्तरेण कालानुपूर्वीमाह-'अहवा' इत्यादिना। अथवा औपनिधिकी कालानुपूर्वी पूर्वानुपूर्यादिभेदेन त्रिविधा प्रज्ञप्ता। तत्र-पूर्वाहपूर्वी-एकसमययह पश्चानुपूर्वी का स्वरूप है। (से किं तं अणाणुपुवी?) हे भदन्त? अना नुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? ____ उत्सर-(एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए अणंतगच्छगयाए सेढीए अण्णमण्णभासो दूरुवृणो) अनानुपूर्वी में समयादि पदों का एकर की वृद्धिपूर्वक उपन्यास किया जाता है, फिर बाद में आपस में इनका गुणा किया जाता है। इस प्रकार गुणा करने पर जो अनन्त भंगरूप-राशि उत्पन्न होती है उसमें से आदि और अन्त के दो भंग घटा दिये जाते हैं । इस प्रकार से अनानुपूर्वी अनन्त भंगात्मक होती है। यहां काल का विचार प्रस्तुत है और समयादिक कालरूप से प्रसिद्ध हैं। इस लिये शिष्यों को समयादिरूप कालका आनुषंगिकरूप से ज्ञान हो जावे इसलिये सूत्रकार प्रकारान्तर से कालानुपूर्वीका कथन करते है-(अहवा
ओवणिहिया कालाणुपुत्वी तिविहा पण्णत्ता) अथवा औपनिधिकी कालानुपूर्वी तीन प्रकार की कही गई है (तं जहा) जैसे (पुवाणुपुब्धी पच्छाणुपुत्री, अणाणुपुव्वी) पूर्वानुपूर्भ, पश्चानुपूर्वी और अनानुपूर्वी।
___ उत्तर-(एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए अणंतगच्छगयाए सेढीए अण्णमगम्भासो दूसवूणो) अनानुभवी मां समयाहि पहानी मे सनी वृद्धिथी ઉપન્યાસ કરવામાં આવે છે. ત્યાર બાદ આપસમાં (અંદર અંદર) તેમના ગણ (તેમને ગુણાકાર) કરવામાં આવે છે. આ પ્રકારે ગુણાકાર કરવાથી જે અનંત ભંગરૂપ રાશિ ઉત્પન્ન થાય છે તેમાંથી શરૂઆતને અને અન્તન એક, એમ બે અંગે ઓછાં કરવામાં આવે છે. આ પ્રકારે અનાનપૂર્વ અનંત ભંગરૂપ હોય છે. અહીં કાળને અધિકાર ચાલી રહ્યો છે અને સમયાદિક કાળરૂપે પ્રસિદ્ધ છે તેથી શિષ્યને સમયાદિ રૂપ કાળનું આનુષંગિક રૂપે જ્ઞાન થઈ જાય તે હેતુથી સૂત્રકાર કાલાનુપૂર્વાના સ્વરૂપનું અન્ય પ્રકાર नि३५ ४२ -(अहवा ओवणिहिया काल'णुपुत्वी तिविहा पण्णता) अयामोपनिधिही मानुषी ३ ॥२नी ही छे. (तं जहा) ते त्र] प्रा। नीय प्रमाणे छे-(पुत्वाणुपुठवी, पच्छाणुपुठवी, अणाणुपुत्री) - पूर्वानी , પશ્ચાત પૂવી અને અનાનુપૂવ.
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