Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १५६ पारिणामिकभावनिरूपणम्
टीका- 'से कि तं' इत्यादि___ अथ कोऽसौ पारिणामिकः ? इति शिष्यप्रश्नः । उत्तरयति-पारिणामिकापरिणमनं सर्वथाऽपरित्यक्तपूर्वावस्थस्य यद्रूपान्तरेण भवनं स परिणामः, उक्तंच
"परिणामो ह्यन्तिरगमनं न च सर्वथा व्यवस्थानम् ।
न च सर्वथा विनाशः, परिणामस्तद्विदामिष्टः॥ इति । स एव तेन वा निर्वृत्तः परिणामिका स सादि पारिणामिकानादि पारिणामिकेति भेद द्वयविशिष्टः। तत्र सादिपारिणामिकः अनेकविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-जीर्णमुरा, जीर्णगुडो,
अब सूत्रकार पारिणामिक भाव का निरूपण करते हैं"से कि तं पारिणामिए ?" इत्यादि ।
शब्दार्थ:- (से किं तं पारिमाणामिए) हे भदन्त ! पारिणामिक भाष क्या है?
उत्तर-(पारिणामिए, दुविहे पण्णत्ते) पारिणामिक भाव दो प्रकार का-कहा गया है । (तं जहा) वे प्रकार ये हैं-(साइपारिणमिए य अणार पारिणामिए य सादि पारिणामिक और अनादि पारिणामिक । जिसमें द्रव्य की पूर्वअवस्था का तो सर्वथा परित्याग हो नहीं और एक अवस्था से दूसरी अवस्थाएँ होती रहें इसीका नाम परिणमन -परिणाम है। कहा भी है-"परिणामो" इत्यादि यही बात अन्यत्र कही है, कि एक अवस्था से दूसरी अवस्था का होना यही परिणाम है। अर्थात् स्वरूप में स्थित रहकर उत्पन्न तथा नष्ट होना परिणाम है,सर्वथा व्यवस्था
હવે સૂત્રકાર પરિણામિક ભાવના સ્વરૂપનું નિરૂપણ કરે છે“से कि तं पारिणामिए" त्या
शाय'-(से कि तं पारिणामिए ?) 3 भगवन्! पारिवामि कानु સ્વરૂપ કેવું છે?
उत्तर-(पारिणामिए दुविहे पण्णत्ते, तंजहा) पारिभि भावना नाय प्रभारी म २ छ-(साइ पारिणामिए य अणाइ पारिणामिए य) (१) साल पारि
મિક અને (૨) અનાદિ પરિણામિક જે પરિણામમાં દ્રવ્યની પૂર્વ અવસ્થાનો સર્વથા પરિત્યાગ થતું ન હોય એવી રીતે એક અવસ્થામાંથી બીજી અવસ્થાઓ यती २७, सेवा परिमनने सातिपरिणाम ४ छ ५५छे ४-"परिणामो" ઈત્યાદિ એજ વાત બીજી જગ્યાએ પણ આ પ્રમાણે જ કહી છે-એક અવસ્થામાંથી બીજી અવસ્થા રૂપ પરિણમન થવું તેનું નામ પરિણામ છે.
For Private and Personal Use Only