Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगचंन्द्रिका टीका सूत्र १५८ द्विकादिसंयोगनिरूपणम् औदयिक भाव घटित होता है । इसी प्रकार से मनुष्य उपशांत मानी, मनुष्य उपशांत मायी और मनुष्य उपशांत क्रोधी इन इन वचनों में भी घटित कर लेना चाहिये। औदयिक क्षायिक सोन्निपातिक नाम को दूसरा भंग है-इसका द्रष्टान्त इस प्रकार से जानना चाहिये कि जैसे यह मनुष्य क्षीणकषायी है। औदयिक क्षायोपशमिक नाम का तीसरा सामि पातिक भंग है जैसे मनुष्य पंचेन्द्रिय है । औदयिक पारिणामिक नाम का चौथा सानिपातिक भंग है जैसे मनुष्य जीव हैं। जहां पर औदयिक भाव को छोड़ कर औपशमिक भाव के साथ क्षायिक, क्षायोपशमिक और पारिणामिक भावों का संयोग कर भंग बनाये जाते हैं वहां ५वर्ष ६ ठा और सातवां ये सानिपातिक भाव बनते हैं। उनमें औपशमिक क्षायिक यह साभिपातिक नाम का पहिला भंग है। जैसे यह उपशांत लोभी दर्शन मोहनीय के क्षीण होजाने से क्षायिक सम्यग्दृष्टि है। औपशमिक क्षायिक नामका दूसरा भंग है जैसे यह उपांत मानी आभिनियोधिक ज्ञानी है । औरमिक पारिणामिक नाम का तीसरा भंग है-जैसे उपशान्त मायाकषाय वाला भव्य । जहां पर औपशमिके ' કહેવાથી મનુષ્ય ગતિ કર્મના ઉદયને લીધે ઔદયિક ભાવને સદૂભાવ બતાવ્યું છે છે. એ જ પ્રમાણે ઉપશાન્ત માની મનુષ્ય, ઉપશાન્ત માથી મનુષ્ય અને ઉપશીત લેભી મનુષ્ય, આ ત્રણે પ્રકારના કથનમાં પણ ઔદયિક અને ઔપશમિક ભાવના સંગથી નિપન્ન સાન્નિપાતિક ભાવ જ ઘટિત થઈ જાય છે.
દયિક ક્ષાયિક સાનિપાતિક ભાવ” નામના બીજા ભંગનું દૃષ્ટાન્ત નીચે प्रमाणे छे-" 240 मनुष्य क्षी पाय छे."
"मीहयि खायोपशभिः" नामना on सोनियति नुटान्त“ મનુષ્ય પંચેન્દ્રિય છે.” ઔદયિક પરિણામિક નામના ચેથા સાન્નિપાતિક नु दृष्टान्त-" मनुष्य ७३ जे."
પશમિક ભાવની સાથે અનુક્રમે ક્ષાયિક, શાપથમિક અને પારિ. મિક ભાવના સાગથી પાંચમાં, છઠ્ઠા અને સાતમાં સાનિ પાતિક ભાવ રૂપ
निरूपन्न थाय छे. "मीपशभिः क्षायि" नाना पायमा सानातिनु: शतઆ ઉપશાન્ત લોભી દર્શન મેહનીય કર્મને ક્ષય થઈ જવાથી ક્ષાયિક सभ्य छ" આ “પશમિક ક્ષાપશમિક” નામના છઠ્ઠા સાનિસ્પતિક ભંગનું earn-"AL BAI-त मानी मानिनिमाथि ज्ञानी छे."
“ઔપશમિક પરિણામિક” નામના સાતમાં સાનિ પાતિક ભંગનું टा--Sard भाया पायवाणी १०५."
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