Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 779
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगद्वारसूत्रे (अस्थिणामे उवसमियखहयपारिणामियनिष्फण्णे) आठवां-औपशमिक क्षायिक और पारिणामिक इन तीन भावों के संयोग से निष्पन्न औपशमिक क्षायिक पारिणामिक नाम का सान्निपातिक भाव (अस्थिणामे उवसमियखोवसमियपारिणामियनिप्फण्णे) नौवां-औपशमिक, क्षायोपशमिक और पारिणामिक इन तीन भावों के संयोग से निष्पन्न औपशमिक क्षायोपशमिक पारिणामिक नाम कासान्निपातिक भाव, अस्थिणामे खइयखओवस मियपारिणामियनिष्फण्णे) दसवांक्षायिक, क्षायोपशमिक, और पारिणामिक इन तीनों भावों के संयोग से निष्पन्न क्षायिक क्षायोपशमिक पारिणामिक नामका सान्निपातिक भाव । (कयरे से णामे उदयउवसमियखानप्फण्णे) प्रश्न-हे भदन्त ! औदयिकोपशमिक क्षायिक नाम का जो प्रथम त्रिक भाव संयोगी सान्निपातिक भाव है वह कैसा है ? उत्तर-(उदइय उवसमियखइयनिष्फण्णे) औदयिकोपमिक क्षायिकनाम का जो प्रथम त्रिक संयोगी सान्निपातिक भाव है वह ऐसा है. उदाएत्तिमणुस्से उवसंता-कसाया खहयं संमत्तं) मनुष्यगति औदयिक भाव में है कषायों का उपशम औपशमिक भाव में हैं और क्षायिक ..(अस्थि णामे उवसमियखइयारिणामियनिष्फण्णे) (८) मोपभि, ક્ષાચિક અને પરિણામિક, આ ત્રણ ભાવેના સગથી બનતે “પરામિક ક્ષાયિક પારિણામિક નામનો સાન્નિપાતિક ભાવ.” (अस्थिणामे उपसमिय खओवसमिय पारिणामिय निकण्णे) (6) मोपभिर, ક્ષાયોપશમિક અને પરિણામિક, આ ત્રણ ભાના સંયોગથી બનતે પશમિક ક્ષાયોપથમિક પરિણામિક નામને સાન્નિપાતિક ભાવ.” __- (अस्थिणामे खइयन ओवसमियपारिणामियनिप्पण्णे) (१०) क्षायि3, क्षाया५२. મિક અને પરિણામિક, આ ત્રણ ભાના સંગથી બનતે “ક્ષાયિક ક્ષાપશમિક પરિણામિક નામને સાત્રિપાતિક ભાવ.” प्रश्न-(कयरे से गामे उदइयउवसमियखइयनिष्कण्णे ?) ७ मावन् ! ઔદયિકીપશમિક ક્ષાયિક નામને જે પહેલે વિકભાવ સગી સાન્નિપાતિક ભાવ છે તે કે છે? उत्तर-(उदइयउवसमियखइयनिष्कण्णे) मोहथि: भोपाभि क्षायि: નામને જે પહેલે ત્રિકભાવસંગી સાન્નિપાતિક ભાવ છે તે આ પ્રકારને छे-(उदइए त्ति मणुस्से उवसंता कसाया खइयं संमत्त) मनुष्य गति मौयि ભાવ છે, કષાયોને ઉપશમ ઔપશમિક ભાવ છે અને ક્ષાયિક સમ્યકત્વ For Private and Personal Use Only

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