Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मनुयोगवन्द्रिका टीका सूत्र १५८ द्विकादिसंयोगनिरूपणम् - द्विकादि पञ्चकान्ताः संयोगा ससंख्यका उक्ताः। तत्र द्विकादिसंयोगा है। इति तान् प्रदर्शयितुमाह- मूलम्-एत्थ णं जे ते दस दुगसंयोगा ते गं इमे-अस्थि णामे उदइयउवसमियनिष्फण्णे? अत्थि णामे उदइयखाइगनिष्फण्णे२, अस्थि णामे उदइयखओवसमियनिष्फण्णे३, अस्थि णामे उदइयपारिणामियनिष्फण्णे४, अस्थि णामे उवसमियखइयनिप्फण्णे५, अस्थि णामे उसमिय खओवसमियनिष्फ पणे६, अस्थि णामे उवसमियपारिणामियनिष्फण्णे७, अस्थि णामे खइयखओवसमियनिष्फपणेद, अस्थि णामे खड्यपारि णामियनिष्फण्णे९, अस्थि गामे खओवसमियपारिणामियनिफण्णे१०। कयरे से णामे उदइय उपसमियनिष्फण्णे? उदइयू उवसमियनिष्फण्णे -उदइएत्ति मणुस्से उवसंता कसाया। एसणं से णामे उदइय उवसमियनिष्फण्णे॥१॥ कयरे से णामे उदइयखाइयनिष्फपणे ? उदइयखाइयनिष्फण्णे-उ स्से खइयं सम्मत्तं। एस णं से णामे उदइयखइयणिप्फण्णे॥२॥ कयरे से णामे उदइयख ओवसमियनिष्फण्णे? उदइयखओका समियनिष्फणे-उदइएत्ति मणुस्से खओवसमियाइं इंदियाई। एसणं से णामे उदइयखओवसमियनिप्फपणे॥३॥ कयरे से दशभाव त्रिकसंयोगज, पांचभाव चतुष्क संयोग, और एक भाव पंचा संयोगज बनते हैं। इस प्रकार ये २६ सान्निपातिक भाव हैं।॥सू०१५७॥
DAIN
ભાવે, ચતુષ્કસ જન્ય પાંચ ભાવે અને પંચકર્સગ જન્ય એક ભાવ નિષ્પન થાય છે. આ પ્રકારે કુલ ૨૬ સાનિપાતિક ભાવ થાય છે. પાસ ૧૫ણા
For Private and Personal Use Only