Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १५८ द्विकादिसंयोगनिरूपणम् . . ७५१ पारिणामिकमावस्य संयोगादेको भङ्गः। इति दश भङ्गा बोध्या। इत्थं सामान्यतो दश भङ्गान् ज्ञात्वा विशेषतस्तान जिज्ञासितुकामः शिष्यः पृच्छति-कतरतू तन्नाम औदयिकौपशमिकनिष्प नम्-औदयिकोपशमिकभावेन यन्निष्पद्यते तन्नाम किम् ? इति । उत्तरयति-औदयिकोपशमिकनिष्पन्नमेवं विज्ञेयम्-औदयिकमितिमानुष्यम्, जामियनिष्फणे) ९वां-क्षाइक और पारिणामिक के संयोग से निष्पन्न भाव (अस्थिणामे खओवसमियपारिणामिनिष्फण्णे) १० वां-क्षायो. पशमिक और पारिणामिक के संयोग से निष्पन्न हुआ भाव । इस प्रकार ये औदायिक के साथ औपशमिक आदि चार भावों के संयोग से ४ भंग, औपशमिक के साथ क्षायिक आदि तीन भंगो के संयोग से तीनभंग, क्षायिक के माथ क्षायोपशमिक आदि दो भावों के संयोग से दो भंग तथा क्षायोपमिक के साथ पारिणाभिक भाव के संयोग से एक भंग ये दश भंग हो जाते हैं। इस प्रकार सामान्य से दश भंगों को जानकर विशेषरूप से शिष्य पूछता है। कि (कयरे से णामे उदय उवसमिय निष्फण्णे ? हे भदन्त ! औदयिक एवं औपशमिक भाव के संयोग से जो साभिपातिक भावरूप भंग निष्पन्न होता है वह कैसा है? • उत्तर-(उदायउवसमियनिष्फण्णे) औदयिक एवं औपशमिक
भने क्षया५शभिडना अयोगी नि०पन्न मा (अस्थिण मे खइय पारिण मियनिष्फण्णे) (6) क्षायि अने पारिवामिना संयोगथी निरूपन्ना (अस्थिणामे खओवसमियपारिणामियनिष्फण्णे) (१०) क्षाया५शभि अन पारिवामिना સંગથી નિષ્પન્ન ભાવ આ પ્રકારે ઔદયિકની સાથે પરામિક આદિ ચારના સગથી ૪ ભંગ, ઔપશમિક ભાવની સાથે ક્ષાયિક આદિ ત્રણ ભાવના સંગથી ૩ ભંગ, ક્ષાવિકભાવની સાથે ક્ષાપશમિક આદિ બે ભાવના સંગથી ૨ ભંગ તથા ક્ષાપશમિકની સાથે પારિણમિક ભાવના સાગથી એક ભંગ બને છે. આ રીતે કિસંગી કુલ ૧૦ ભંગ બને છે.
આ પ્રકારે આ અંગેનું સામાન્ય કથન કરીને હવે સૂત્રકાર દરેક ભંગના સ્વરૂપનું વિવેચન કરે છે–
प्रश्न-(कयरे से णामे उदइयउपसमियनिष्फण्णे?) 8 मान्! मौयि અને ઔપશમિક ભાવના સાગથી જે સાન્નિપાતિક ભાવ રૂપ ભંગ નિષ્પન્ન થાય છે, તેનું સ્વરૂપ કેવું હોય છે?
।
For Private and Personal Use Only