Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १४२ भावानुपूर्वीनिरूपणम् तथा-इच्छाकाराद्युपसम्पदन्तानां पदानामन्योऽन्याभ्यासो द्विरूपोन:-आघन्तपदद्वयविवक्षामपहाय ये भङ्गास्ते-अनानुपूर्वी बोध्याः। पकृतमुपसंहरन्नाह-सैषा सामाचर्यानुपूर्वीति ।मु० १४१॥
अथ भावानुपूर्वीमाह... मूलम्-सेकिंतं भावाणुपुवी? भावाणुपुवी तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-पुन्वाणुपुब्बी पच्छाणुपुव्वी अणाणुपुवी। से किं तं पुव्वाणुपुत्री ? पुवाणुपुवी-उदए १, उपसमिए २, खाइए३, खआवसामिए४, पारिणामिए५, संनिवाइए६,। से तं पुवाणु. पुवी। से किं तं पच्छाणुपुव्वी? पच्छाणुपुव्वी संनिवाइए जाव उदइए। से तं पच्छाणुपुब्बी । से किं तं अणाणुपुवी ? अणाअनानुपूर्वी क्या है ? (अणाणुपुब्धी) अनानुपूर्वी सामाचारी इस प्रकार से है (एयाए चेव एगोइयाए उगुत्तरियाए दस गच्छगयाए सेटीए अण्णमन्नम्भालो दुरूवूगो) इच्छाकार से लेकर उपसंपदा तक के दश पदों का एक एक अधिक संख्या कर के परस्पर में गुणा करना चाहिये और इस प्रकार से जो राशि उत्पन्न होवे उसमें से आदि अन्त के भंग छय की विवक्षा को कम कर देना चाहिये । अन्त में जितने भंग बचते हैं उन भंगात्मक यह अनानुपूर्वी सामाचारी होती है। (से तं सामागारी आणुपुव्वी) इस प्रकार यह सामाचारी आनुपूर्वी है ॥सू० १४१।।
प्रश्न-(से किं त अणाणुपुव्वी) 3 मान्! मनानुपूवा सोभायारीनु ५१३५ ३ छ ?
उत्तर-(अणाणुपुत्री) अनानुभूती सामायारीनु २१३५ ॥ ४२ थे(एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए दसगच्छगयाए सेढीए अण्णमन्नन्मासोदुरूवूणों) ઈચ્છાકારથી લઈને ઉપસંપદા પર્યન્તના દસ પદેને એક એક અધિક સંખ્યા લઈને પરસ્પરમાં ગુણાકાર કરવો જોઈએ આ પ્રકારે જે રાશિ પ્રાપ્ત થાય તેમાંથી આદિ અને અન્તના બે ભગેની વિવફા બાદ કરી નાખવી જોઈએ. આ બે ભંગ બાદ જતાં જેટલા અંગે બાકી રહે છે તેટલા ભંગારૂપ આ मनानु सामाया उसय छे. (से तं सामायारी आणुपुत्री) साभाया। આનુ પવનું આ પ્રકારનું સ્વરૂપ છે. સૂ૦૧૪૧
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