Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १४५ द्विनामादिस्वरूपनिरूपणम् जीवनामाप्यनेकविधम् । जीवाजीवेति द्वाभ्यां नामभ्यामेव विपक्षितसमस्तपदार्थानां संग्रहाद् द्विनामेत्युच्यते । पुनरेतदेव प्रकारान्तरेणाह-अथवा द्विनाम द्विविधं प्रज. तम्-अविशेषितं च विशेषितं च । तत्र-अविशेषितं द्रव्यम् । विशेषितं-जीवद्रव्यमजीवद्रव्यं च। प्रत्येकमिदमविशेषितविशेषितभेदात् पुनर्भेदान्तराचानेकपकारक भवतीति मूलादेव विज्ञेयम् । सौगम्याच मूलस्य व्याख्या न क्रियते । अत्रेदंबोध्यम्। है। (तं जहा) जैसे (देवदत्तो जगदत्तो विण्हुदत्तो सोमदत्तो) देवदत्त, यज्ञदत्त, विष्णुदत्त, सोमदत्त आदि । (से किं तं अजीव नामे) वह अजीब नाम क्या है ? (अजीवनामे अणेगधिहे पण्णसे) __ उत्तर- अजीव नाम अनेक प्रकार का प्रज्ञप्त हुआ है (तं जहा) जैसे (घडो, पडो, कडो, रहो.) घट, पट, कट, रथ, आदि । (से तं अजीव नामे) यह अजीव नाम है । (अहवा दुनामे दुविहे पपगत्ते) अथवाद्विनाम दो प्रकार का प्रज्ञप्त हुआ है। (तं जहा) जैसे (विसेसिए य अविसेसिए य) विशेषित और अविशेषित (अविसेसिए दबे विसेसिए जीवव्वे अजीवब्वे य) अविशेषित द्रव्य कहलाता है और विशेषित उसके भेद कहलाते हैं । द्रव्य ऐसा नाम अविशेषित द्विनाम है। और द्रव्य दो प्रकार का होता है-१ जीव द्रव्य
और दूसरा अजीव द्रव्य ऐसा नाम विशेषिन द्वि नाम है । इनमें जीव द्रव्य और अजीव द्रव्य ये अविशेषित और विशेषित के भेद से तथा और भी भेदान्तरों से अनेक प्रकार के हो जाते हैं यह बात मूल से
प्रश्न-(से किं तअजीवनामे?) मन्! नाम मे शु
उत्तर -(अजीवनामे अणेगविहे पण्णत्ते) भनाभन भने प्र ह छ. (त'जहा) २ ४ (घडो, पडो, कडो, रहो) ५८ ५८, ४८ (२८), २५ वगैरे (से त अजीवनामे) मा प्रा२नुं नाम डाय छे. (अहवा दुनामे दुविहे पण्णत्ते) ५२द्विनामना मे ४.२ ४. छे. (तजहा) भ .... (विसेसिए य अविसेसिए य) (१) विशषित म२ (२) विशेषित (अविसेसिप दव्वे, विसेसिए जोववे अजीवव्वे य) द्रव्यने विशेषित ३५ उपाय छ અને દ્રવ્યના જીવ અજીવ રૂપ ભેદને વિશેષિત કહેવાય છે. દ્રવ્ય એવું નામ અવિશેષિત દ્વિનામ છે. દ્રવ્ય બે પ્રકારનું હોય છે-(૧) જીવ દ્રવ્ય અને (૨) અછવદ્રવ્ય આ જીવદ્રવ્ય અને અછવદ્રવ્ય ૫ નામને વિશેષિત દિનામ કહે છે. વળી જીવ દ્રવ્ય અને અજીવ દ્રવ્યના અવિશેષિત અને અવિશક્તિ નામના બે ભેદે તથા બીજા પણ ઘણા ભેદ પડતા હોવાથી તે વ્યોમા અનેક પ્રકાર હોય છે, આ વાત મૂળ સૂત્રમાંથી જ જાણી લેવી જેમ -
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