Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १५३ औपशमिकभावनिरूपणम् बोध्यः। अत्रेदं बोध्यम्-मोहनीयस्योपशमेन दर्शनमोहनीयं चारित्रमोहनीयं चोपशान्तं भवति, एतद्वये उपशान्ते क्रोधादय उपशान्ता भवन्तीति । स एषोऽनन्त रोक्तो द्वितीयो भेदो बोध्यः । प्रकृतमुपसंहरन्नाह-स एष औपशमिक इति । इत्थं निर्दिष्टो द्विविधोऽप्यौपशमिको भावः ॥मू० १५३॥
औपशमिक भाव अनेक प्रकार का कहा गया है। (तं जहा) जैसे-(उवसंत कोहे) क्रोध का उपशान्त होना (जाव उवसंतलोहे) यावत् लोभ का उपशान्त होना, (उवसंतपेमे) प्रेम-राग-का उपशान्त होना (उवसंत दोसे) द्वेष का उपशान्त होना (उवसंत देसणमोहणिज्जे) दर्शनमोहनीय का उपशांत होना (उवसंतमोहणिज्जे) मोहनीय कर्म का उपशान्त होना (उपसमिया सम्मत्तलद्धी) औपशमिकी सम्यक्त्व लब्धि, (उवसमिया चरित्तलद्धी) औपशमिकी चारित्रलब्धि (उवसंत कसाय छ उमत्थवीयरागे) उपशान्त कषाय, छद्मस्थवीत राग (से तं उपसमनिप्फण्णे) इस प्रकार यह उपशम निष्पन्न औपशमिक भाव हैं। (सेतं उवसमिए) इस प्रकार दोनों प्रकार का औपशमिक निर्दिष्ट हो चुका।
भावार्थ-इस सूत्र द्वारा सूत्रकारने औपमिक भाव का स्वरूप दिखलाया है। उसमें उन्होंने यह स्पष्ट किया है कि उपशम से होनेवाला औपशमिक भाव दो प्रकार का होता है । एक प्रकार का औपशमिक भाव भने ४२॥ ४ा छे. (त'जहा) रेभ -(उत्रसंते कोहे जाव उवसंते लोहे) डोष पन्त थी, भानशान्त थयु, मायापशान्त थवी, म अशान्त था, (उवसंत पेमे) प्रेम (1) Said 4, (उवसंतदासे) देष SAld थवे, (उवसंत देसण मोहणिज्जे) शनमा नीयनु शान्त , (उवसंतमोहणिज्जे) माखनीय भनु शन्त थयु, (उपसमिया सम्मत्तलद्धी) भोपशमिडी सभ्यतय, (उवसमिया चरित्तलद्धी) औपशभिडी यात्रिय (उवसंत कसाय छउमस्थवीयरागे) शान्त पाय, अस्थवीत, (से तं उपसमनिष्फण्णे) पत्यालि३५ मा ५शमनियन मोपशम भाव छ. ( से तं उवसमिए) मा प्रा२नु भन्ने प्रा२ना मो५भि भावोनु २१३५ समन::
ભાવાર્થ-આ સૂત્ર દ્વારા સૂત્રકારે પથમિક ભાવના સ્વરૂપનું નિરૂપણ કર્યા છે. સૂત્રકાર ઉપશમ જનિત ઔપથમિક ભાવના બે પ્રકારો બતાવ્યા છે. એક પ્રકારને ઔપશમિક ભાવ એ હોય છે કે જે માત્ર મોહનીયકમના
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