Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 745
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ૨૮ अनुयोगद्वारसूत्रे, मकवमुपसंहरणाह-स. एष क्षायोपशमनिष्पन्न इति । क्षायोपशमिको भावः प्ररूपित सूचयितुमाह- स एष क्षायोपशमिक इति सू० १५५ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पूर्वधारी ( खओवसमिए जाव चउदस पुथ्वी) क्षायोपशमिक यावत् चतुर्दशपूर्वधारी (खओवसमिए गणी) क्षायोपशमिक गणी खाओब समिए वायर) क्षायोपशमिकबाचक ( से तं खओवसम्मनिष्फण्णे ) इसप्रकार ये सब क्षायोपशम निष्पन्न हैं ( से तं खओवसमिए) यह बह क्षायोपशमिक है। - भावार्थ - इस सूत्र द्वारा सूत्रकारने क्षायोपशमिक क्या है इसका विवेचन किया है। उन्होंने कहा है कि एक तो क्षायोपशम ही क्षायोपश fue है और दूसरा क्षयोपशम निष्पन्न क्षायोपशमिक है। इनमें चार घातिक कर्मों का क्षय उपलक्षित जो उपशम है वह क्षायोपशमिक है। क्षायोपशमिक ज्ञान के आवारक जो कर्म हैं उनमें सर्वधातिस्पर्युक (कमांश) और देशघातिस्पर्द्धक ये दोनों प्रकार के स्पर्द्धक पाये जाते हैं। इसलिये उनका क्षयोपशम होता है। नव नोकषायों में केवल देशघातिस्पर्द्धक ही पाये जाते हैं इसलिये उनका क्षयोपशम नहीं होता केवल ज्ञानावरण आदि प्रकृतियों में केवल सर्वघातिस्पर्द्धक पाये जाते हैं क्षायोपशभिः दृष्टिवाडधारी, (खओवसमिए णत्रपुच्ची) क्षायोपशभिः नवपूर्व धारीथी संहने (खओवसमिए जाव चउदसपुव्वी) क्षायोपशमिठ, यो पूर्वधारी पर्यन्तना लवे!, (खओवसमिए गणी ) क्षायोपशभिः गली, (खओयसमिए वायए) भने क्षायोपशमि पाय (सेतं खओवसमनिप्पण्णे) आधा क्षार्थी पशम निष्यन्न लावे! छे. ( से तं खओवस्वमिए) क्षायोपशभिनु म प्रहार स्वईच छे. 1, ભાવાર્થ –આ સૂત્ર દ્વારા સૂત્રકારે ક્ષાાપશમિક ભાવના સ્વરૂપનુ વિવેચન કર્યુ છે તેમાં તેમણે એવું પ્રતિપાદન કર્યું છે કે એક તા ક્ષાાપશમજ ક્ષાપશર્મિક છે અને બીજું ક્ષાષશમનિષ્પન્ન ક્ષાયેાપશર્મિક છે. ચાર ઘાતિયા કમીના ક્ષયથી ઉપલક્ષિત જા જે ઉપશમ છે, તેનું નામ ક્ષાયાપથમિક V. સાચાપશર્મિક જ્ઞાનનું આવરણ કરનારા જે ક્રાં છે તેમાં સાતિ પા અને દેશધાતિ પુકારૂપ અને પ્રકારના સ્પદ્ધકાના સદ્દભાવ રહે છે. ۱ For Private and Personal Use Only

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