Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 741
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . . अनुयोगद्वारी किमी, निषिद्धत्वात् । सम्पति प्रथमं भेदमुपसंहरन्नाह स एष क्षयोपशम इति । मातीय भेदं पृच्छति-अथ कोऽसौ क्षयोपशमनिष्पन्नः? इति । उत्तरयति-क्षयोपशनिपल अनेकविधः मजप्तः। अनेकविधस्वमेवाह-तद्यथा-क्षायोपशमिकी मानिनिमोशिकानलन्धिः क्षयोपशमेन निष्पन्ना क्षायोपशमिकी, सा का? : इल्या आमिनिबोधिकज्ञानलब्धिरिति। आमिनिबोधिकज्ञान-भतिज्ञानं तस्य लन्धिम् प्राधिः इयं हि-स्वावरणकर्मक्षयोपशमेनोपसम्पद्यते, अत एवेयं क्षायोपशमिकीत्युच्यते । तभारभ्य क्षायोफ्शमिकी मनः पर्यवज्ञानलब्धिरिति यावद् वक्तव्यम् । तत्वान से अन्य कर्मों को नहीं होता है । (से तं खोसमे) इस प्रकार यहक्षयोपशम है (से कि तं खोवसमणिप्फण्णे १ ) हे भदंत ! क्षयोपशम निष्पन्न क्षायोपशमिक भाव क्या है ? उत्तर-(खोवसमनिप्फण्णे अणेगविहे पण्णत्त) क्षयोपशमं निष्पून सायोपशमिक भाव अनेक प्रकार का कहा गया है । (तं जहा ) वे प्रकार ये हैं (खोव समिया आर्भिणियोंहियणाणलद्धी जाव खोवसमिया मणप्रज्जवणाणलद्धी) क्षयोपशमिकी आभिनियोधिक ज्ञानलन्द्धि-अभिनिबाधक नाम मतिज्ञान है। इस मतिज्ञान की प्राप्ति का नाम आभिनियोधिक शानलब्धि है। यह आभिनियोधिकज्ञानलब्धि मतिज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम से होती है। इसलिये इसे क्षायोपमिकी कही है, इसी प्रकार श्रुतज्ञानलंब्धि श्रुतज्ञानावरणकर्म के क्षयोपशम से होती है। अवधिમીય અને અંતરાય, આ ચાર પ્રકારનાં કમેને જ ક્ષપશમ થાય છે, અન્ય કમેને पशम यता नथी. (से तं खओवसमे) मा प्रानुक्षयोपशमनु १३५ . 3. प्रभ-(से कि तं खओवसमणिप्फण्णे ?) 3 मन्! क्षयोपशमनि०पन्न સાપશર્મિક ભાવનું સ્વરૂપ કેવું છે? उत्तर-(खओवसमनिप्फण्णे अणेगविहे पण्णत्ते) क्षयोपशमनिष्पन्न झायो"पशभिड मा भने प्रारन। यो छे. (तंजहा) रेम है....(खओवसमिया आभिणियोहियाणणलद्धी जाव खोवसमिया मणपज्जवणाणलद्धी) क्षायोपभिती અભિનિધિક જ્ઞાનલબ્ધિ મતિજ્ઞાનને આભિનિધિક જ્ઞાન કહે છે. આ મતિજ્ઞાનની પ્રાપ્તિનું નામ આભિનિધિક જ્ઞાનલબ્ધિ છે. મતિજ્ઞાનાવરણ ના પશમથી આ અભિનિધિક જ્ઞાનલબ્ધિની પ્રાપ્તિ થાય છે તેથી તેને શાપથમિકી કહેવામાં આવી છે. એ જ પ્રમાણે શ્રુતજ્ઞાનાવરણ કમને ઉપશમથી શ્રુતજ્ઞાનલશ્વિની, અવધિજ્ઞાનાવરણ કર્મના ક્ષે પશમથી .7- 2.. WARE For Private and Personal Use Only

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