Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १५१ घण्णामनिरूपणम् औपसर्गिकम् उपसर्गेषु पठितस्वात् । 'संयतः' इति मिश्रम्-उपसर्गनामोभयनिष्नत्वात् । एतैर्नामिकादिभिः पञ्चभिः सकलशब्दसंग्रहणात् पश्चनामवं बोध्यम् । प्रकृतमुपसंहरन्नाह-तदेतत् पश्चनामेति ।।मू० १५०॥
अथ षण्णामं निरूपयति
मूलम्-से किं तं छण्णामे ? छण्णामे छबिहे पण्णत्ते, तं जहा उदइए, उवसमिए खइए खओवसमिए पारिणामिए संनिवाइए ॥सू०१५१॥
छाया-अथ किं तत् षण्णाम ? षण्णाम षड्विधं प्रज्ञप्तम् , तद्यथा-औदयिकः, औपशमिकः, क्षायिका, क्षायोपशमिकः, पारिणामिका, सान्निपातिकः।मु० १५१॥ टीका-'से किं तं' इत्यादि
अथ किं तत् षण्णाम ? इति शिष्यप्रश्नः। उत्तरयति-पण्णाम षटपकारकं नाम-पण्णाम, तद्धि-औदयिकादिभेदेन षड्विधं विज्ञेयम् । नन्वत्र प्रकृतं यह उपसर्ग, उपसर्गों में पठित होने से औपसर्गिक है। (संजए त्ति मिस्स) संयत यह सुबन्त पद उपसर्ग और नाम इन दोनों से निप्पन होने के कारण मिश्र है। इन नामिक आदि पांचों से समस्त शब्दों का संग्रह हो जाता है इसलिये ये पांच नाम कहे जाते हैं। (से तं पंचनाम) इस प्रकार यह पंचनाम का स्वरूप है॥सू० १५०॥ अब सूत्रकार छहनाम का निरूपण करते हैं-'से कितं छण्णामे इत्यादि। शब्दार्थ-से कि तं छण्णामे?) हे भदन्त ! छह नाम क्या है?
उत्तर-(छण्णामे छविहे पण्णत्ते) छह नाम छह प्रकार का प्रज्ञप्त ३५ छे. (परित्ति ओवसग्गिय) “परि" मा 64स छ. उपस 32 ना प्रयोग थाय छ, ते २ तेने औ५सर्गि छे (संजए त्ति मिस्स) सेयत ५४ सम्' ५सग भने 'यत' ५४ सयाथी मन्यु वाथी तन મિશ્રના ઉદાહરણ રૂપ ગણી શકાય આ નામિક આદિ પાંચે પંચનામ વડે સમસ્ત શબ્દોનો સંગ્રહ થઈ જાય છે, તેથી તેમને પંચનામ કહે છે. રે पंचनाम) . २ ५यनामनु १३५ सभा ॥२०१५॥
હવે સૂત્રકાર છનામની પ્રરૂપણા કરે છે – "से किंत' छण्णामे " त्या:
शहाय-(से कि त छण्णाम?) 3 भगवन् ! नामना ! २ ३५ છનામનું સ્વરૂપ કેવું કહ્યું છે ?
उत्तर-(छण्णांमे छविहे पण्णत्ते) छनामा ६ ॥२॥ ४ा छ (तनामना
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