Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अनुयोगद्वारसूत्र शरीरं कामकं शरीरंच भणितव्यम् । प्रयोगपरिणामितो वर्णो गन्धो रसः स्पर्शः। स एषोऽजीवोदयनिष्पन्नः। स एष उदयनिष्पन्नः। स एष औंदयिकः॥सू० १५२॥
टीका-'से कि तं' इत्यादि
अथ कोऽसौ औदयिकः ? इति पश्नः। उत्तरयति-प्रौदयिको द्विविधा मनमः। दैविध्यमेवाह-औदयिकः उदयनिष्पन्नश्च । तत्र औदयिकः-ज्ञानावरणीयादीनामष्टकर्मपकृतीनामुदयः । 'ण' इति वाक्यालङ्कारे। अयं प्रथमो भेदः । द्वितीयश्च भेद उदयनिष्पन्नः। स हि-जीवोदयनिष्पन्नः, अजीवोदयनिष्पन्नश्च ।
अब सूत्रकार इन्हीं भावों का स्वरूपनिरूपण करते हैं‘से किं तं उदइए' इत्यादि ।
शब्दार्थ-(से किं तं उदइए?) हे भदन्त ! पूर्वप्रकान्त औदयिक भाव क्या हैं ?
उत्तर-(उदहए दुविहे पण्णत्ते) औदयिक भाव दो प्रकार का प्राप्त हुआ है। (तं जहा) उसके वे दो प्रकार ये हैं-(उदहए य उदय निष्फण्णे य) एक औदयिक और दूसरा उदयनिष्पन्न (से किंतं उदइए?) हे भदन्त ! औदायिक भाव क्या है ? (अट्ठण्हं कम्मपयडीणं उदएणं उदइए)
उत्तर-ज्ञानावरणीय आदि आठ कर्म प्रकृतियों का उदय औदयिक है। (से तं उदइए) इस प्रकार यह औदयिक है।
(से किं तं उदयनिप्फणे १) हे भदन्त ! उदयनिष्पन्न क्या है ?
આગલા સૂત્રમાં ઔદયિક આદિ જે ભાવ પ્રકટ કરવામાં આવ્યા છે, તે ભાવના રૂપનું હવે સૂત્રકાર નિરૂપણ કરે છે–
"से कि त उदइए" त्या6ि
शहाथ-(से कि त उदइए १) लगवन् ! नामना छ लेहमान પહેલા ભેદ રૂપ ઔદયિક ભાવનું સ્વરૂપ કેવું હોય છે? - उत्तर-(उदइए दुविहे पण्णत्ते) मोहयि भाव मे ५४।२।। Bही . (जहा) में प्रा२ नीय प्रमाणे सभा -(उदइए य उदयनिष्फण्णे य) (1) मोडयि भने (२) यनि-पन्न.
प्रश्न-(से कि त उदइए ) 3 सावान् ! मोहथिईनु २५३५ ४. डाय छे.
उत्तर-(अण्ह कम्मपयडीणं उदएणं उदइए) ज्ञाना१२०ीय माहिमा ४म प्रकृतिमान। जय मोयि ३५ समाव (सेत उदइए) मारीत मोहयिनु વરૂપ સમજવું. HN-(से कि त छदयनिष्फण्णे?) डे मापन् ! यनि-ननु २५३५३७ डाय?
For Private and Personal Use Only