Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १४३ 'नाम' स्वरूपनिरूपणम् इति नाम-वस्वभिधानमित्यर्थः । उक्तंच
"जं वत्धुणोऽभिहाणं पज्जयभेयाणुसारि तं णामं ।
पइभेअं जं नमई, पइभेयं जाइ जं भणिअं" ॥१॥ छाया-यद्वस्तुनोऽभिधानं, पर्ययभेदानुसारि तन्नाम ।
प्रतिभेदं यन्नमति, प्रतिभेदं याति यद् भणितम् ।।इति।। एवंविधमिदं नाम दशविधं प्रज्ञप्तम् । दशविधत्वमाह-तद्यथा-एकनाम द्विनाम त्रिनामेत्यादि । तत्र-येन केन एकेनापि सता नाम्ना सर्वेऽपि विवक्षितपदार्था अभिधातुं शक्यन्ते, तदेकनाम बोध्यम् । एवं याभ्यां द्वाभ्यां नामभ्यां सर्वेऽपि
उत्तर - यह नाम दश प्रकार का कहा गया है । जीवगत ज्ञानादिक पर्यायों और अजीवगत रूपादिक पर्यायों के अनुसार जो प्रतिवस्तु के भेद से नमता है - झुकता है - अर्थात् उनका अभिधायकवाचक होता है वह नाम है । उक्तंच-करके "जं वत्थुणोऽभिहाणं" इत्यादि गाथा द्वारा यही नाम शब्द की व्युत्पत्ति स्पष्ट की है। (तं जहा) नाम के दस प्रकार ये हैं - (एगणामे दुणामे तिणामे च उणामे,पंचणामे, छणामे, सत्तणामे, अट्ठणामे 'नवणामे, दसणामे ) एक नाम, दोनाम, तीन नाम, चार नाम, पांच नाम, छह नाम, सात नाम, आठनाम, नौ नाम, और दश नाम ! जिस एक नाम से समस्त पदार्थों का कथन हो जाता है वह एक नाम है। जैसे सत्, सत् इस नाम से समस्त पदार्थों का युगपत् कथन हो जाता है क्यों कि ऐसा कोई भी पदार्थ
उत्तर-(णामे दसविहे पण्णत्ते) ते नमना से प्रार ४ा छ त જ્ઞાનાદિક પર્યાય અને અછવગત રૂપાદિક પર્યા પ્રમાણે જે પ્રત્યેક વરતના ભેદથી નમે છે-ખૂકે છે-એટલે કે તેમનું અભિધાયક (વાચક) હોય છે, તેનું नाम "नाम" छ. "जं वत्थुणोऽभिहाणं " त्याहि था द्वारा 'नाम' શબ્દની ઉપર પ્રમાણેની વ્યુત્પત્તિ જ પ્રકટ કરવામાં આવી છે.
(जहा) नामना स प्रा२। नीचे प्रमाणे छ-(एगणामे, दुणामे, तिणामे, चउणामे, पंचणामे, छणामे, प्रत्तणामे, अट्ठणामे, नवणामे, दसणामे) (१) नाम, (२) मे नाम, (3) 7 नाम, (४) या२ नाम, (५) पांय नाम, (६) छ नाम, (७) सात नाम, (८) 418 नाम, (6) नव नाम मन (१०) सनाम.
જે એક નામથી સમસ્ત પદાર્થોનું કથન થઈ જાય છે, તેને “એકનામ”
छ. म "सत्" " सत्" नामथी समस्त पहातुं ये साये કથન થઈ જાય છે, કારણ કે એ કઈ પણ પદાર્થ નથી કે જે આ સત
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