Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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'अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १३१ अनुगमस्वरूपनिरूपणम्
मूलम्-से किं तं अणुगमे ? अणुगमे णवविहे पण्णत्ते, तं जहा-संतपयपरूवणया जाव अप्पाबहुं घेव। णेगमववहाराणं आणुपुत्वीदव्वाइं किं अस्थि णस्थि ३१ नियमातिषिण वि अत्थि। णेगमववहाराणं आणुपुत्वीदव्वाइं किं संखिज्जाइं असंखिज्जाई 'अणंताइं३? तिषिण वि नो संखिजाई, असंखिजाई, नो
अणंताई।सू० १३१॥ १. छाया-अथ कोऽसावनुगमः ? अनुगमो नवविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-सत्पदमरूपणता यावदल्पबहुत्व चैव । नैगमव्यवहारयोरानुपूर्वी द्रव्याणि किं सन्ति न अपने २ स्थान रूप जाति में ही अन्तर्भूत होते हैं इस सूत्र की व्याख्या के लिये देखो पीछे का ८० वां सूत्र ॥ ॥५.१३०॥
"से किं तं अणुगमे" इत्यादि । शब्दार्थ-(से किं तं अणुगमे?)हे भदंत ! अनुगम का क्या स्वरूप है ?
उत्तर-(अणुगमे णवविहे पणत्ते) अनुगम नौ प्रकार का कहा गया है। (तंजहा) जैसे (संतपयपरूवणया, जाव अप्पाबहुंचेव) संतपदप्ररूपणता से लेकर अल्पबहुत्व तक
अर्थात्-(१) सत्पदप्ररूपणता, (२) द्रव्यप्रमाण, (३) क्षेत्र (४) स्पर्शना (५) काल (६) अन्तर, (७) भाग (८) भाव (९) अल्पबहुत्व। विद्यमान पदार्थ विषयक पद की प्ररूपणा का नाम सत्पदप्ररूपणता है। इस में (णेगमववहाराणं आणुपुबीदवाई कि अस्थि णस्थि ३) जो
સ્થાન રૂપ જાતિમાં જ અન્તર્ભત થાય છે. આ સૂત્રની વ્યાખ્યા માટે પાછળ ૮૦મું સૂત્ર વાંચી જવું જોઈએ સૂ૦૧૩
“से किं तं अणुगमे" त्या
हाथ-(से कि त अणुगमे) भगवन् ! मनुगमनुस्१३५ १
उत्तर-(अणुगमे णवविहे पण्णत्ते) मनुगमन प्रारना हो छ. (तंजहा) त प्रा। नीचे प्रभारी छ
(संतपयपरूवणया, जाव अप्पाबहुं चेव) सत५६ ५३५ताथी सधन અલપબદ્ધત્વ પર્યરતના નવ પ્રકારે અહીં ગ્રહણ કરવા જોઈએ. તે નવ પ્રકારે હવે ગણાવવામાં આવે છે –
(१) सत्५४ प्र३५यता, (२) द्रव्यप्रभा, (3) क्षेत्र, (४) २५शना, (५) m, (6) मन्त२, (७) मा (८) मा भने (4) ममत्व.
વિદ્યમાન પદાર્થવિષયક પદની પ્રરૂપતાનું નામ સત્પદપ્રરૂપણુતા છે. तभा (णेगमववहाराणं आणुपुचीदवाई कि अस्थि णस्थि ?) मेवा प्रश्न
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