Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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aartient टीका सूत्र १२३ कालद्वारनिरूपणम्
समयान् स्थितिः, उत्कर्षेण चासंख्येयं कालं स्थितिः । अयं भावः आनुपूर्वी द्रव्याणां मध्ये त्रिसमयस्थितिकं द्रव्यं सर्वतो जघन्यं, तच्च श्रीन् समयानेव तिष्ठति । अतो जघन्यतस्त्रिसमयं यावदानुपूर्वीद्रव्याणां स्थितिः । उत्कृष्टतस्तु असंख्येयं कालं स्थितिर्बोध्या । ततः परमेकेन तंद्र पेण परिणामेन द्रव्यावस्थान
उत्तर- ( एगं दव्वं पडुच्च) एक आनुपूर्वीद्रव्य की अपेक्षा करके आनुपूर्वीद्रव्यों की (जहणेणं) जघन्य से (तिण्णि समया) तीन समयकी स्थिति है, और (उक्को सेणं) उत्कृष्ट से (असंखेज्जं कालं) असंख्यातकाल की स्थिति है। इसका तात्पर्य यह है। आनुपूर्वीद्रव्यों के बीच में तीन समय की स्थितिवाला द्रव्य सब से कम है यह तीन समय तक ही ठहरता है-रहता है। इसलिये आनुपूर्वीद्रव्यों की स्थिति जघन्य से तीन समय तक की कही गई है। और उत्कृष्ट से जो असंख्यात काल की स्थिति कही गई है उसका तात्पर्य यह है कि द्रव्य असंख्यात काल के बाद आनुपूर्वोरूप परिणाम से परिणमित હવે સૂત્રકાર કાળદ્વારનું કથન કરે છે—
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'गमववहाराणं " इत्याह-
शब्दार्थ- (णेगमबवहाराणं) नैगमव्यवहार नयस भत ( आणुपुव्वीदव्बाई) समस्त भानुपूर्वी द्रव्ये (काळओ) गजनी अपेक्षा (केव च्चिरं होई १) डेंटला સમય સુધી રહે છે?
उत्तर- (एग दव्वं पच्च) शेठ मानुपूर्वी द्रव्यनी अपेक्षाओ विचार 'श्वामां आवे, तो आनुपूर्वी द्रव्यनी (जहणणे तिष्णि समया ) ४धन्य (सोछामा सोधी) स्थिति भी सभयनी उडी के गाने (उक्कोसेणं असंखेज्जं काल) उत्सृष्ट ( वधारेभां पधारे) स्थिति असण्यात अजनी उही छे. मा કથનને ભાવાથ નીચે પ્રમણે છે-જે આનુપૂર્વી દ્રન્ગેા છે તેમાં ત્રણ સમયની સ્થિતિવાળુ' દ્રશ્ય સૌથી છેલુ છે. તે ત્રણ સમય સુધી જ રહે છે, તે કારણે આનુપૂર્વી બ્યાની જઘન્ય સ્થિતિ ત્રણ સમયની કહી છે. તેની ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ અસખ્યાત કાળની કહેવાનુ કારણ એ છે કે તેદ્રવ્ય અસખ્યાત કાળ બાદ આનપૂવી' રૂપ પરિણામ રૂપે પણિમિત રહેતુ જ નથી,
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