Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १३६ अर्थपदप्ररूपणादीनां निरूपणम् . ५८९ । पथा सन्ति तथा कालानुपामपि संग्रहमते भणितव्यानि । नवरं-विशेषस्त्वयमेवयदत्र स्थित्यभिलाप कर्तव्यः। अयं भाव:-क्षेत्रानुपूर्त्या "तिप्पएसोगाढे आणु. पुत्री, चउप्पएसोगाढे आणुपुरो” इत्याद्युक्तम् , एवमिह-" तिसमयहिए आणुपुब्बी, चउसमयटिए आणुपुब्बी" इत्यादि वक्तव्यमिति । क्षेत्रानुपूर्वोवत् कियदबधिवक्तव्यम् ? इत्याह-'जाव से तं' इति । यावत्स एषोऽनुगम इति पर्यन्तं क्षेत्रानुपूविदेव वक्तव्यमिति । प्रकृतमुपसंहरन्नाह-' से तं संगहस्स' इत्यादि । सैषा संग्रहनयसम्मता अनौपनिधिको कालानुपूर्वीति ।।५० १३६।। ___उत्तर--संग्रहनय मान्य इन पांचों द्वारों का कथन जिस प्रकार का क्षेत्रानुपूर्थी में किया गया है उसी प्रकार का कथन संग्रहनयसंमत इन पांचों द्वारों को इस कालानुपूर्वी में भी जानना चाहिये । (णवरं ठिई अभिलायो जाव से तं अणुगमे) परन्तु विशेषता केवल इतनी है कि क्षेत्रानुपूर्वी में "त्रिप्रदेशावगाढ आनुपूर्वी चतुष्प्रदेशावगाढ आनुपूर्वी" इस प्रकार से भंगों का आलाप करने में आया है तब यहां पर "ति समयट्टिाए आणुपुठवी चउसमयटिइए आणुपुव्वी" इत्यादि प्रकार से भंगों का आलाप करना चाहिये । क्षेत्रानुपूर्वी की तरह इन आनुपूर्वी
आदि भंगों का संग्रह कहां तक करना चाहिये इसके लिये सूत्रकार कहते हैं कि "से तं अणुगमे" इस प्रकार यह क्षेत्रानुपूर्वी संबन्धी अनु. गम का स्वरूप है " यहां तक संग्रह करना चाहिये ।(सेतं संगहस्स अ. गोवणिहिया कालानुपुत्वी ) इस प्रकार यह संग्रहनय संमत अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी है। જેવું કથન કરવામાં આવ્યું છે, એવું જ કથન સંગ્રહનયસંમત આ કાલાनुभूती ना पाये दाना विषयमा ५ सभ७ पु. (णवरं ठिई अभिलावो जाव से तं अणुगमे) ५२-तु क्षेत्रानुषी ना ४५न ७२di मा थनमा नीय પ્રમાણે વિશિષ્ટતા રહેલી છે-ક્ષેત્રાનુપૂવીના પ્રકરણમાં જ ત્રિપ્રદેશાવગાઢ આનુપૂવ, ચતુપ્રદેશાવગાઢ આનુપૂર્વી, '( આ પ્રકારે ભંગોનું કથન કરવામાં माय छ, त्यारे सपनयसभत सानु पूचीमा “ तिसमयद्विइए आणुपुव्वी, उसमयदिइए आणुपुवी, " त्याह रे मनोनु थन ४२७ न्ने क्षेत्रानुभूती ना २ त ५४ ४थन, “से तं अणुगमे " " | मानु अनुगमनु २१३५ छे. या सूत्रा ५ ४२ न . (से तं संगहस्स अणोवणिहिया कालाणुपुव्वी) मा १२नु सनयसभत भनीपनिविही કાલાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ છે.
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