Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगद्वारसूत्रे
संख्येय समयस्थितिक आनुपूर्वी असंख्येयसमयस्थितिकआनुपूर्वी । एकसमयस्थितिक अनानुपूर्वी । द्विसमयस्थितिक अवक्तव्यकम् । त्रिसमयस्थितिका आलुपूर्व्यः । एकमयस्थितिका अनानुपूर्व्यः । द्विसमय स्थितिका अवक्तव्यकानि । fer नैगमoranrcयोः अर्थपदमरूपणता । एतस्याः खलु नैगमव्यवहारयोः अर्थपदपरूपणतायाः किं प्रयोजनम् ? एतस्याः खलु नैगमव्यवहारयोरर्थपद प्ररूपणताया नैगमव्यवहारयोर्भङ्गसमुत्कीर्त्तनता क्रियते ॥ ० १२७॥
टीका' से किं तं ' इत्यादि
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अथ का सा नैगमव्यवहारसम्मता अर्थपदपरूपणता ? इति प्रश्नः । उत्तरयतिइत्थं च पर्याय पर्यायणोरभेदोपचारमाश्रित्य तत्र च कालपर्यायस्यैव प्राधान्यमाश्रित्य कालपर्यायविशिष्टस्य द्रव्यस्यापि कालानुपूर्वीत्वं बोध्यम् । अनन्तसमयावधिद्रव्यस्य स्थितिः स्वभावादेव न भवति, अतोऽनन्तसमय स्थितिकः
उत्तर = नैगमव्यहारनयसंमत अर्धपदप्ररूपणता इस प्रकार से हैं( ति समयहिए अणुपुरवी, जाव दससमय एडिए आणुपुब्बी) जिस द्रव्य विशेष की स्थिति तीन समय की हैं अर्थात् तीन समय की स्थितिवाला जो द्रव्य विशेष है - वह त्रिसमयस्थितिक है। ऐसा त्रिसमय स्थितिक जो द्रव्य विशेष है वह आनुपूर्वी है, ऐसा द्रव्य विशेष एकपरमाणु भी हो सकता है द्विपरमाणुक स्कंध भी हो सकता तीन परमाणु वाला स्कंध भी हो सकता है, चार परमाणु वाला भी स्कंध हो सकता है, पांच आदि परमाणु वाले स्कंध से लेकर अनंत परमाणुओं वाला स्कंध तक भी हो सकता है । इस प्रकार एक परमाणु रूप द्रव्य से लेकर द्विपरमाशुक त्रिपरमाणुक आदि अनन्त परमाणुक स्कंध पर्यन्त जितने भी द्रव्य
उत्तर- (गमववहाराणं अत्थपयपरूवणया) नैगमव्यवहार नयस मत अर्थપ્રરૂપણુતા આ प्रभारनी छे - (तिसमयइिए आणुपुब्बी, जाव दससमय ट्ठइए आणुपुत्री) ने द्रव्यविशेषनी स्थिति ऋणु समयनी होय छे, ते द्रव्यविशेषने ત્રિસમયસ્થિતિ કહે છે એવું ત્રણ સમયની સ્થિતિવાળુ' જે દ્રવ્યવિશેષ છે, તેને અડી આનુપૂર્વી રૂપ સમજવુ જોઇએ એવુ' દ્રવ્યવિશેષ એક પરમાણુ પણ હાઇ શકે છે, એ પરમાણુવાળા સ્કન્ધ પણ હોઈ શકે છે, ત્રણ પરમાણુવાળા સ્કન્ધ પણ હાઈ શકે છે, ચાર પરમાણુવાળા સ્કન્ધ પણ હોઇ શકે છે, અને પાંચથી લઇને અનંત સુધીના પરમાણુઓવાળા સ્કન્ધા પણ હોઇ શકે છે. આ રીતે એક પરમાણુ રૂપ દ્રવ્યથી લઈને દ્વિપરમાણુક, ત્રિપરમાણુક અન‘ત પરમાણુક કન્ધ પન્તના જેટલાં દ્રવ્યવિશેષ છે, તે ત્રણ સમયની સ્થિતિ
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